सुसाइड कर रहे हैं दिहाड़ी मजदूर, स्टूडेंट्स सुसाइड में भी हुई बढ़ोतरी
पर हमारे देश में अब तलक कितनी "ज़िम्मेदार" सरकारों ने राज किया है ये तो सब जानते हैं। ऐसे में विरोध और विरोधियों को कुचलकर आगे बढ़ने वाले सत्तारूढ़ दल को उसके ही सरकारी आंकड़ों से कितना फर्क पड़ता है ये तो देखने वाली बात होगी।
इस रिपोर्ट में कुछ ऐसे आंकड़े भी सामने आये हैं जिनके विषय में कुछ स्वतंत्र मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बहुत हलचल है। और ये आंकड़े हैं सुसाइड के आंकड़े। जिनमें आश्चर्यजनक रूप से बढ़ोतरी देखने को मिली है।
ख़ास कर दिहाड़ी मजदूर और स्टूडेंट्स सुसाइड के मामलों में एक उछाल देखने को मिला है।
पिछले साल 2021 में दिहाड़ी मजदूर आत्महत्या के मामले सबसे ज़्यादा रहे । 42,004 दिहाड़ी मजदूरों की आत्महत्या के कारण मृत्यु हुई, जो कुल आत्महत्या के मामलों का 25.6 प्रतिशत है। साल 2020 में देश में आत्महत्या के 1,53,052 मामले दर्ज किए गए। इसमें दिहाड़ी मजदूरों की आत्महत्या के 37,666 मामले थे, जो कुल आत्महत्याओं का 24.6 प्रतिशत है। वर्ष 2019 में यानी कोविड काल से पहले देश में आत्महत्या से मौत के 1,39,123 मामले दर्ज किए गए थे। इसमें दिहाड़ी मजदूरों की संख्या 32,563 थी, जो कुल आत्महत्याओं का 23.4 प्रतिशत है। गौरतलब है कि यह आंकड़े कोरोना काल की भीषण त्रासदी के वक्त जिस ऊफान पर थे आज उससे भी ज़्यादा ऊफान पर हैं।
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दिहाड़ी मजदूरों की आत्महत्या के आंकड़ों में लगातार ईजाफा हुआ है |
यानि कि आज भी दिहाड़ी मजदूरों तथा अन्य असंगठित वर्गों को अपनी रोज़ी रोटी चला पाना बहुत मुश्किल हो रहा है। और ऐसे में सत्ता धरी दल व इसके अमूक मंत्री, सलाहकार भारतवर्ष को विश्वगुरु व 20 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी बनाने की डींगे हांकते हैं।
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बिबेक देबरॉय-अध्यक्ष आर्थिक सलाहार समिति-प्रधानमंत्री |
इतना ही नहीं आंकड़ों से ये भी पता चलता है कि हमारे देश में स्टूडेंट्स सुसाइड के मामलों में भी बढ़ोतरी हुई है
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स्टूडेंट्स के सुसाइड के आंकड़ों में भी लगातार वृद्धि दर्ज की गई |
रिपोर्ट्स से पता चलता है कि 2021 में दर्ज छात्र आत्महत्याओं की संख्या 13,089 थी, जो 2020 में 12,526 थी। इसका मतलब ये हुआ कि इस देश का युवा धन भी कहीं ना कहीं आर्थिक तंगी और बेरोज़गारी के कारण खपता जा रहा है। परन्तु उसके पास दो ही उपाय हैं या तो वो इस परिस्थिति के सामने सरेंडर कर दे और अमूक पार्टी का कोई पदाधिकारी या पेज प्रमुख बन जाए या फिर स्वाभिमान बरकरार रखे और जब जब वो अतिशय टूट जाए तो अपना जीवन ही ख़त्म कर ले ,अगर परिस्थिति ऐसी है तो सच में यह बहुत चिंताजनक स्थिति है। और हमारी सरकारों को इस विषय में ज़रूर कुछ करना चाहिए।
By: Dharmesh Kumar Ranu
1 टिप्पणियाँ
कहने को साथ अपने इक दुनियाँ चलती हैं । औऱ आत्महत्या में वहीं दुनियाँ रुक जाती हैं ।
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