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ओशो के किस्से से प्रेरित एक लघु कथा- गर्व से कहो

 गर्व से कहो

मैं ब्रह्मांड गुरु हूँ!
मैं पर-ब्रह्म ,मैं त्रिभुवन विजेता,
मैं हिटलर का नाती, सिकंदर का पोता!
कुछ भी कहें विरोधी, श्रेष्ठता कम ना होगी,
कर लो मेरी जय जयकार हो जाओ भव-सागर पार!


वो दर्शनशास्त्र प्रोफेसर था, झक्की माना जाता था। उसने एक रोज़ क्लास में घुसते ही कहा "मैं दुनिया का सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति हूँ" .....विद्यार्थी हँसे, उसने कहा "हँस लो, हँस लो! पर यदि मैंने ये बात साबित कर दी कि मैं ही दुनिया का सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति हूँ, तो तुम लोग रोज़ क्लास में मेरे आते ही यही वाक्य मेरे लिए कहोगे".....विद्यार्थी उत्सुकता से भर गए, उसने अपने तथ्य रखने शुरू किए।

गर्व से कहो हम "विश्व गुरु हैं"
"क्या यह पृथ्वी, ब्रह्मांड का सबसे श्रेष्ठ गृह है?"- उसने पूछा....सभी विद्यार्थी बोले "हाँ"....वाह वेरी गुड! "क्या यह द्वीप पृथ्वी का सबसे श्रेष्ठ द्वीप है?".....विद्यार्थी फिर एक बोले साथ बोले "हाँ".....वाह! सही जा रहे हो! "वो तपाक से बोला"....तो अब बताओ कि दुनिया का सबसे श्रेष्ठ देश कौन सा है? उसने पूछा! विद्यार्थियों ने तपाक से जवाब दिया "सारे जहाँ से श्रेष्ठ, हमारा देश".....वाह वाह! तुम लोग कमाल कर रहे हो, ये उत्साह जारी रखो, "इस सबसे श्रेष्ठ देश का सबसे श्रेष्ठतम शहर कौन सा है?" कोई विद्यार्थी बोला " क्या सर! ये किसको नहीं पता.....हमारा शहर!.....बाकी विद्यार्थी भी सुर में सुर मिलाकर बोले....."हाँ हाँ! हमारा शहर"... "वाह-तुम लोगों का तो जवाब नहीं", छूटते ही वो बोल पड़ा....अच्छा अब बताओ इस सबसे, श्रेष्ठ देश की सबसे श्रेष्ठ यूनिवर्सिटी कौन सी?.....हमारी यूनिवर्सिटी!- विद्यार्थी बोले, "अच्छा इस सबसे श्रेष्ठ यूनिवर्सिटी का सबसे श्रेष्ठ डिपार्टमेंट कौन सा?"......विद्यार्थी फट्ट से बोले, हमारा डिपार्टमेंट..... "सबसे श्रेष्ठ सब्जेक्ट"......"दर्शनशास्त्र"--- सभी बोले!...और सबसे श्रेष्ठ प्रोफेसर?.....दर्शनशास्त्र के "प्रोफेसर देशभक्त दास" विद्यार्थी बोले.....जी हाँ! "देशभक्त दास" यानि कि मैं!---वो बोला......"तो अब लगा लो दिमाग और लगा लो जोड़-गुणा-भाग, जब समग्र ब्रह्मांड के सबसे श्रेष्ठ गृह पृथ्वी के सबसे श्रेष्ठ द्वीप के भी ,सबसे श्रेष्ठ देश के भी श्रेष्ठतम शहर की, सबसे श्रेष्ठ यूनिवर्सिटी का, सबसे श्रेष्ठ अध्यापक ही मैं हूँ, तो इस हिसाब से सबसे श्रेष्ठ व्यक्ति भी मैं ही हूँ! मैं ही विश्व गुरु हूँ! विश्व ही क्यों? मैं ब्रह्मांड गुरु हूँ!
मैं पर-ब्रह्म ,मैं त्रिभुवन विजेता,
मैं हिटलर का नाती, सिकंदर का पोता!
कुछ भी कहें विरोधी, श्रेष्ठता कम ना होगी,
कर लो मेरी जय जयकार हो जाओ भव-सागर पार!
गुरु जी कुछ इस तरह, मस्ती में गा रहे थे,
स्टूडेंट्स संग में झुनझुना बजा रहे थे।
उस रोज कक्षा में "अच्छे दिन"आ रहे थे!

लेखक- धर्मेश कुमार रानू
Dharmesh Kumar Ranu

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