संत श्री रामचंद डोंगरेजी महाराज कथा करते करते रोने लगते थे ….
-पत्नी के देहांत पर उनके पास इतना भी रुपया नही था की उनका अंतिम क्रियाकर्म कर सके
-न कोई धन लेना , न कोई बैंक अकाउंट
-किसी का कोई गुरु नही होना न किसी को शिष्य बनाना और न ही कोई आश्रम और ट्रस्ट बनाया उन्होंने
जानिए एक ऐसे महान संत को जिसने सनातन धर्म के उच्च तम मूल्यों को जीते हुए दुनिया को बताया की संत होना क्या ?
होता है ।
संपूर्ण भारत में कथावाचक के रूप में ख्याति अर्जित कर चुके रामचंद्र डोंगरेजी महाराज इंदौर मध्य प्रदेश में जन्मे और वड़ोदरा गुजरात में बड़े हुए । एकमात्र ऐसे भागवत कथावाचक थे जो दान का रूपया अपने पास नही रखते थे न ही कोई बैंक खाता और न ही कोई ट्रस्ट बना कोई रक़म लेते थे। किसी को शिष्य बनाना नही और किसी का गुरु होना नहीं उनका संकल्प था ।
विवाह किया परंतु भक्ति मार्ग में अवरोध होने से पत्नी से दूर रहे । उनकी पत्नी आबू में रहती थीं। पत्नी की मृत्यु के पांचवें दिन उन्हें खबर लगी । बाद में वे अस्थियां लेकर गोदावरी में विसर्जित करने मुम्बई के सबसे बड़े धनाढ्य व्यक्ति रति भाई पटेल के साथ गये।
नासिक में डोंगरेजी ने रतिभाई से कहा कि रति हमारे पास तो कुछ है ही नही, और इनका अस्थि विसर्जन करना है। कुछ तो लगेगा ही क्या करें ?
फिर खुद ही बोले - "ऐसा करो कि इसका जो मंगलसूत्र एवं कर्णफूल हैं, इन्हे बेचकर जो रूपये मिले उन्हें अस्थि विसर्जन में लगा देते हैं।"
इस बात को अपने लोगों को बताते हुए कई बार रोते - रोते रति भाई ने कहा कि "जिस समय यह सुना हम जीवित कैसे रह गये, बस हमारा हार्ट फैल नही हुआ।"
हम आपसे कह नहीं सकते, कि हमारा क्या हाल था। जिन महाराजश्री के इशारे पर लोग कुछ भी करने को तैयार रहते हैं, वह महापुरूष कह रहे हैं कि पत्नी के अस्थि विसर्जन के लिये पैसे नही हैं और हम खड़े-खड़े सुन रहे थे ? फूट-फूट कर रोने के अलावा एक भी शब्द मुहँ से नही निकल रहा था।
ऐसे वैराग्यवान और तपस्वी संत-महात्माओं के बल पर ही सनातन धर्म की प्रतिष्ठा है। वो कथा कहते कहते इतने भावुक होकर रोने लगते थे भगवान की भक्ति में की सुनने वाले भी उसी भाव में भर जाते थे ।
नडीयाद गुजरात में उन्होंने अपना शरीर त्यागा 9-11-1991 में और उनकी इच्छा अनुसार उनके नश्वर शरीर को वड़ोदरा के पास मालसर में नर्मदा मैया के प्रवाह में जल समाधि देकर प्रवाहित किया गया ।
इस प्रसंग को सुन कर आजकल के हमारे धर्मद्रोही तथाकथित कथावाचकों को देखो जिन्होंने पैसों के लिए अपने धर्म को ही बदनाम कर दिया करोडों कमाने के लिए जबकि डोंगरे जी एक ही धोती और लँगोटी बाँधते थे । पैर में पादुका जीवन पर्यन्त नही पहनी । हाथ में घड़ी , अंगूठी नही पहनी कभी । खुराक में मूँग और बाजरे की रोटी दूध के साथ लेते थे ।
लेखक -लक्ष्मण पार्वती पटेल
(सोर्स : जन संवाद विचार ग्रुप)
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