हमारे चीते एशियाटिक चीते थे जिनका जीन इन नवागंतुक अफ्रीकी चीतों से अलग था। 72 हजार वर्ष पूर्व अफ्रीकी और एशियाई चीते अलग-अलग बँट गए थे। अफ्रीकी चीते भी बाद में पूर्वी अफ्रीकी और दक्षिणी अफ्रीकी चीते में बँट गए। दक्षिणी अफ्रीकी चीते की कुछ किस्में नामीबिया के फार्मलैंड में रहती हैं। ये चीते उसी नामीबिया से लाये गए हैं।
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नामीबिया से चीतों को भारत लाने वाले विशेष हवाई जहाज की तस्वीर |
भारतीय चीते जो एशियाटिक चीते थे सऊदी अरब से ईरान, इराक, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत तक पाए जाते थे जो कालांतर में घटते-घटते आज सिर्फ ईरान में बचे हैं वो 10-12 की संख्या में। शायद वे भी कुछ दिनों में खत्म हो जाएंगे और इस तरह एशियाटिक चीते धरती से पूरी तरह लुप्त हो जाएंगे।
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अफ़्रीकी देशों में चीतों की लगातार घटती आबादी का विस्तृत चार्ट |
अभी भारत में जो अफ्रीकी चीते लाये गए हैं इनका बहुत ही ज्यादा ख्याल रखना पड़ेगा। एक तो दूसरे नस्ल के चीते हैं, दूसरे महादेश व भौगोलिक वातावरण से एकाएक शिफ्ट हुए हैं, ऊपर से चीते बहुत ही ज्यादा नाजुक, संवेदनशील और नखुराह जीव हैं। हर तरह के वातावरण में नहीं ढलते। खुले घास के मैदान में रहना पसंद करते हैं, तेज दौड़कर शिकार को काबू करते हैं और सिर्फ ताजा मांस खाते हैं। बड़ी बिल्लियों यथा बाघ, तेंदुआ या लकड़बग्घा से इन्हें खतरा रहता है।
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निमिबिया से भारत लाये गए चीते का चित्र |
फिर भी एक अच्छे कार्य की शुरुआत हुई है। एक नायाब जीव को हमारे लोगों ने अपनी मूर्खता से खत्म कर दिया, अब रास्ते पर आए हैं तो देखें कितना सफल होते हैं।
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