Highlights
-Arvind Kejriwal की Gujarat में एंट्री और चुनावी घनसान
-आखिर क्यों BJP की सीट्स लगातार घटती जा रही हैं
-पिछली बार BJP हारते हारते बची - क्या Anti Incumbency एक बड़ा फैक्टर है Gujarat में?
-Gujarat में क्यों चल रहे हैं सत्ता विरोधी आंदोलन, सरकारी कर्मचारी कर रहे आंदोलन
गुजरात में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासत गरमा गई है। गुजरात में अनेकों नेता आकर अपनी पार्टी का प्रचार कर रहे हैं। जिनमें इस बार विशेष रूप से चर्चा इस बार आम आदमी पार्टी के गुजरात विधानसभा में प्रदर्शन को लेकर हो रही है। पिछले विधानसभा चुनावों तक कोई यह उम्मीद भी नहीं कर सकता था कि गुजरात में, भाजपा और कांग्रेस के आलावा कोई तीसरा मोर्चा भी राजनीति में अपना दखल बना सकता है क्योंकि इससे पहले भी गुजरात में ऐसे प्रयोग असफल ही रहे हैं। पर इन सभी भ्रांतियों को तोड़ते हुए अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने गुजरात की सियासत में अपनी एक विशेष जगह बना ली है। इतना ही नहीं बल्कि गुजरात के शहर शहर, कसबे कसबे और तहसील, तालुकाओं तक आम आदमी पार्टी के कार्यकर्त्ता सक्रीय हो गए हैं।
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गुजरात AAP कार्यकर्ताओं में है बेमिसाल जोश देखने को मिल रहा है |
चूँकि भारतीय जनता पार्टी वहां पिछले 27 वर्षों से सत्ता में है इसीलिए एक भीषण एंटी इंकम्बेंसी भी गुजरात में भाजपा सरकार के विरोध में काम कर रही है। और जबसे नरेंद्र मोदी यहाँ के मुख्यमंत्री बने थे तब से लेकर आज तक विधानसभा में भाजपा की सीटों में लगातार गिरावट ही देखने को मिली है। हालांकि अब तक भाजपा नरेंद्र मोदी और उनके के इवेंट मैनेजमेंट फैक्टर्स के कारण जीतती आई थी, पर पिछली बार के विधान सभा में भाजपा 116 घटकर 99 पर सिमट गई थी और सत्ता गंवाने से बाल बाल बची थी, हालांकि भाजपा ने कांग्रेस के विधायकों को खरीदकर (कथित तौर पर) सरकार स्थिर करने का रास्ता साफ़ कर लिया। पर इस बार अरविन्द केजरीवाल की गुजरात में एंट्री ने भाजपा की नींदे उड़ा दी हैं। अरविन्द केजरीवाल ने भी जनता के उन मुद्दों को लेकर चुनावी प्रचार शुरू किया है जो गुजरात की जनता के लिए बहुत अहम् हैं और जिन मुद्दों से गुजरात का गरीब और मध्यम वर्ग प्रभावित है। ऐसे में अरविन्द केजरीवाल धर्म-जाति की राजनीती करने वाली भाजपा पर कहर बनके टूटे हैं। वो इस बार कितना सफल होंगे ये तो समय बताएगा। पर अरविंद केजरीवाल के पक्ष में एक और फैक्टर प्रभावी है और वो है सरकार की नीतियों और निर्णयों के विरोध में गुजरात में चल रही आन्दोलनों की आंधी।
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ग्रेड पे को लेकर आंदोलन करते कर्मचारी |
फिर इस चुनाव से पहले गुजरात की राजधानी आंदोलन का हॉट स्पॉट बन गई है। चुनाव के इस माहौल में ये आंदोलन सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गए हैं। गुजरात के विभिन्न हिस्सों से लोग गांधीनगर में एकत्र हुए हैं और अपनी मांगों को पूरा कराने के लिए "वंदे मातरम और भारत माता की जय" के नारे के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं। यहां एक-दो बल्कि कई आंदोलन अलग अलग मुद्दों पर चल रहे हैं। सरकारी कर्मचारियों का आंदोलन उग्र रूप लेता जा रहा है! वन रक्षक व वन रक्षक ग्रेड वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर बैनर-पोस्टर के साथ नारे लगा रहे हैं, चिकित्सा कर्मचारी अपना काम छोड़कर गुजरात सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं, वन रक्षक ग्रेड पे के लिए आंदोलन कर रहे हैं, किसान आंदोलन कर रहे हैं, शिक्षक आंदोलन कर रहे हैं पुरानी पेंशन योजना के लिए, एलआरडी महिलाएं सड़कों पर आंदोलन कर रही हैं, मिड डे मिल मजदूर आंदोलन कर रहे हैं, पूर्व सैनिक भी सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं, सरकारी कर्मचारी ओपीएस के लिए आंदोलन कर रहे हैं, संविदा आधार कर्मचारी स्थायी नौकरी की मांग कर रहे हैं, शैक्षणिक सहायक भर्ती आंदोलन जा रहा है। पर हाल यह है कि कोरोना काल में जिनके लिए तालियां और थालियां बजवाई गईं थी वैसे अनेकों विभागों के फ्रंट लाइन वारियर्स कर्मचारी भी सड़क पर धरना दे रहे हैं!
गुजरात में आंदोलन की सुनामी फिर आई है, लेकिन फिर भी गुजरात सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है। क्या यह सुनामी सत्ताधारियों के अभिमान को धो देगी और क्या सरकार विरोधी इन आंदोलनों के दम पर और सत्ताइस साल की भारी एंटी इनकंबेंसी के दम पर गुजरात में नई सरकार बनाएगी?
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