Highlights
-Arvind Kejriwal ने चुनावी लड़ाई को BJP Vs AAP में बदल दिया?
-Gujarat Congress बहुत निष्क्रिय साबित होती दिख रही है?
-भाजपा को गुजरात बचने के लिए Communal lAngle काम आएगा?
-क्या AAP जीतेगी Gujarat Elections या फिर मुख्य विपक्षी दल बनेगी?
चुनाव नजदीक आने के साथ-साथ , जमीन पर काम कर रहे राजनीतिक समीक्षकों और सर्वेक्षणकर्ताओं का कहना है कि केजरीवाल गुजरात चुनावों को "भाजपा बनाम आप" के नैरेटिव में बदलने में कामयाब रहे हैं, क्योंकि कांग्रेस, जोकि प्रमुख विपक्षी दल है ,उसके बीच भी चुनाव को लेकर बहुत ठंडा रिस्पॉन्स दिख रहा है।
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गुजरात चुनावों में कांग्रेस निष्क्रिय क्यों नज़र आ रही ? |
हालांकि, उन्हें इस बात पर संदेह है कि क्या केजरीवाल और AAP इस साल के अंत तक चुनाव होने पर इस लहार से चुनावी लाभ हासिल करने में सफल होंगे या नहीं।
एक सर्वे में कई न्यूज़ एजेंसी के लिए डेटा एकत्र करने वाले एक सर्वेक्षणकर्ता ने नाम न छापने का आग्रह करते हुए कुछ मिडिया चैनलों के सूत्रों से कहा है, "AAP के आक्रामक चुनाव अभियान और कांग्रेस की अब तक की ठंडी प्रतिक्रिया ने केजरीवाल को गुजरात चुनाव को BJP बनाम AAP की कहानी में बदलने में मदद की है।"
उन्होंने कहा कि AAP उसी "प्लेबुक" का अनुसरण कर रही है और उसी पारिस्थितिकी तंत्र को तैनात कर रही है जो भाजपा चुनावों के दौरान करती है - "प्रतिद्वंद्वियों के साथ खुद लड़ाई रचती है, पलटवार शुरू करती है और आक्रामक चुनाव अभियानों, प्रवक्ताओं और सोशल मीडिया के माध्यम से मतदाताओं को वांछित संदेश भेजती है। "- इसके पक्ष में कथा का निर्माण करने के लिए।
पिछले महीने, AAP ने दिल्ली आबकारी नीति में कथित भ्रष्टाचार सहित कई मुद्दों पर भाजपा के साथ भयंकर आमने-सामने की टक्कर ली और इसी बीच अपने चुनाव अभियान को चलाने के लिए 1,100 से अधिक “सोशल मीडिया योद्धाओं” को नियुक्त किया, और इस लड़ाई को AAP ने अपने पक्ष में भुनवाया और मोदी सरकार द्वारा केंद्रीय जांच एजेंसियों का कथित दुरुपयोग की बात प्रचारित करवाई।
पोल स्टडी एजेंसी सी-वोटर के संस्थापक यशवंत देशमुख ने कहा कि केजरीवाल "कड़ी मेहनत" कर रहे हैं और उनकी पार्टी गुजरात में "आक्रामक रूप से" प्रचार कर रही है, कांग्रेस की प्राथमिकता पर कोई स्पष्टता नहीं है क्योंकि यह अपने में फंस गई है। एक तरफ कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर "भारत जोड़ो यात्रा" का आयोजन कर रही है शायद इसीलिए कांग्रेस की मशीनरी गुजरात इलेक्शन को इतनी प्राथमिकता नहीं दे रही है और ना ही गुजरात स्टेट कांग्रेस इन महत्वपूर्ण चुनावों को गंभीरता से ले रही है।
जुलाई के बाद से अब तक, AAP सुप्रीमो लगभग हर हफ्ते गुजरात का दौरा कर रहे हैं, अपनी पार्टी के चुनाव अभियान का नेतृत्व करने के साथ-साथ तैयारियों की समीक्षा भी बारीकियों से कर रहे हैं। यही कारण है कि गुजरात के मध्यम और गरीब वर्ग के बीच अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है।
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लगातार गुजरात यात्रा कर रहे केजरीवाल |
और यही भारतीय जनता पार्टी के लिए चिंता का सबब बनता जा रहा है। अब देखना ये है कि इवेंट और इलेक्शन मैनेजमेंट में माहिर आगामी चुनावों से पहले गुजरात भाजपा अपनी सत्ता बचाने के लिए कौनसा ब्रह्मास्त्र लेकर आती है, और इस बात के आसार अभी से ही दिखाई देने शुरू हो गए हैं। पहले बिलकिस बानो के आरोपियों को छोड़ना और उनका "विश्व हिन्दू परिषद्" (VHP) के कारकर्ताओं द्वारा सम्मानित किया जाना,
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क्या बिलकिस बानो मामले पर हो रही सियासत? |
गणेश पूजा के जुलूसों में कई जगह अशांति फ़ैलाने की साजिशें भी हुईं। और इस नवरात्रि में लव जिहाद का मुद्दा फिर से चर्चा में आ रहा है, जिसके माध्यम से यह दर्शाया जा रहा है कि अल्पसंख्या समुदाय के लोगों द्वारा साजिश करके बहुसंख्यक युवतियों को निशाना बनाया जाता है और इसके लिए जैसे सारा अल्प्संक्यक समुदाय ही ज़िम्मेदार हो, ऐसे नैरेटिव चलाये जा रहे हैं। इसी के तहत इस बार गुजरात के गरबा आयोजनों में मुसलमानों और ईसाईयों के प्रवेश को वर्जित किया गया है। और साथ ही साथ कई ऐसे स्पोंसर्स जो कि मुस्लिम समुदाय से आते हैं, उनकी स्पॉन्सरशिप को रद्द भी किया गया है।
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हिन्दू-मुसलमान का मुद्दा फिर फूंकेगा सांप्रदायिक राजनीति में जान? |
ऐसे में हिन्दू-मुस्लिम से जुड़ा कोई बड़ा मुद्दा आगामी चुनावों के लिए अहम् मुद्दा बनता हुआ नज़र आये तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। पर इस बात में कोई शक नहीं है कि केजरीवाल भी गुजरात में साम्प्रदायिकता की गंभीर स्थिति को अच्छे से समझते हैं। इसीलिए उन्होंने बिलकिस बानो के मामले में भी चुप्पी साधी और अब हिन्दू-मुस्लिम विद्वेष के किसी भी मामले पर टिप्पणी करने से बचते हैं। और लगातार स्कूल, हॉस्पिटल्स, रोजगार और किसान की बातों पर और दिल्ली के मॉडल की चर्चा करके वो अपनी अलग दिशा बना रहे हैं। और काफी हद तक वे इस काम में सफल भी हुए हैं। पर फिर भी राह कठिन तो है....अब देखना है कि ये चुनावी ऊँट किस करवट बैठता है।
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