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अडानी का कोयले का ये काला खेल आपके होश उड़ा देगा!

अभी हाल में ही अडानी साहब विश्व के तीसरे सबसे बड़े रईसजादे बने है तो सोचा एक घटना आपसे जाहिर कर दिया जाए

Adani Scam


तो बात शुरू होती है झारखण्ड से

जहां गोड्डा झारखंड का उत्तर-पूर्वी छोर है, घने जंगलों और धान के खेतों वाले इस जिले में कोयले का एक विशाल भंडार भी है। भारत की सबसे पुरानी कोयला खदानों में से एक गोड्डा में है लेकिन, विरोधाभास देखिए कि विद्युतीकरण के मामले में यह देश के सबसे फिसड्डी जिलों में शामिल है।

अब बात आती है की गोड्डा कहाँ से अडानी की याद दिलाएगा??

तो कृपया जान लें कि इसी गोड्डा जिले में अडानी समूह की एक कंपनी Adani Power Limited 1600 मेगावॉट की क्षमता वाला एक ऊर्जा संयंत्र बना रही है. यह संयंत्र कोयले से चलेगा। लेकिन इसकी बिजली गोड्डा या झारखंड के लिए नहीं होगी। उसे सीमा पार बांग्लादेश भेजा जाएगा।

अब भाई देश के लिए कुछ हो न हो पर बंग्लादेश का सवाल है....कोई भी ऊर्जा नीति बना लो,अभी हाल में ही अडानी साहब विश्व के तीसरे सबसे बड़े रईशजादे बने है तो सोचा एक घटना आपसे जाहिर कर दूं।

तो बात शुरू होती है झारखण्ड से

जहां गोड्डा झारखंड का उत्तर-पूर्वी छोर है, घने जंगलों और धान के खेतों वाले इस जिले में कोयले का एक विशाल भंडार भी है. भारत की सबसे पुरानी कोयला खदानों में से एक गोड्डा में है लेकिन, विरोधाभास देखिए कि विद्युतीकरण के मामले में यह देश के सबसे फिसड्डी जिलों में शामिल है।

Godda Power Station
झारखण्ड के मानचित्र पर गोड्डा को दर्शाता चित्र 

अब बात आती है की गोड्डा कहाँ से अडानी की याद दिलाएगा??

तो कृपया जान लें  कि इसी गोड्डा जिले में अडानी समूह की एक कंपनी अडानी पॉवर लिमिटेड 1600 मेगावॉट की क्षमता वाला एक ऊर्जा संयंत्र बना रही है. यह संयंत्र कोयले से चलेगा. लेकिन इसकी बिजली गोड्डा या झारखंड के लिए नहीं होगी. उसे सीमा पार बांग्लादेश भेजा जाएगा।

अब भाई देश के लिए कुछ हो न हो पर बंग्लादेश का सवाल है....कोई भी ऊर्जा नीति बना लो,नही पा पाओगे भैया

नही भरोसा?? रुको बताता हूँ।।

पूर्व ऊर्जा नीति क्या थी?

झारखंड में कोयले पर आधारित बिजली परियोजनाएं लगाने वाली कंपनियों के साथ राज्य सरकार के समझौते का स्वरूप इससे पहले कुछ और होता था। 2012 में बनी राज्य की ऊर्जा नीति के तहत राज्य सरकार उनसे जो 25 फीसदी बिजली खरीदती थी उसमें से 12 फीसदी की कीमत परिवर्तनीय (वैरियेबल) यानी सिर्फ उसे बनाने में लगे ईंधन यानी कोयले की कीमत के बराबर होती थी. बाकी 13 फीसदी बिजली की कीमत के दो घटक होते थे - परिवर्तनीय और स्थिर (फिक्स्ड). यानी कि इसमें ईंधन की लागत के साथ-साथ परियोजना को बनाने और चलाने में लगा खर्च भी जोड़ा जाता था. यह दर वास्तव में कितनी होगी, इसका निर्धारण राज्य विद्युत नियामक आयोग (जेएसईआरटी) करता था।

अब सब ठीक से कैसे चले सरकार में भाजपा जो है

2014 तक सभी राज्यों की सरकारें अपने यहां चल रहे ऊर्जा संयंत्रों को कोयले की खदान आवंटित करने की सिफारिश केंद्र सरकार से किया करती थीं। इससे संयंत्रों को सस्ता कोयला मिल जाता था। शर्त यह होती थी कि वे इस कोयले को अपनी परियोजना के इतर किसी और काम के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकतीं। लेकिन अगस्त 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था खत्म कर दी। शीर्ष अदालत ने कहा कि खदानों का आवंटन मनमाने और अपारदर्शी तरीके से हो रहा है. 2015 में केंद्र ने कानून में बदलाव करते हुए कोयला खदानों के आवंटन के लिए नीलामी को अनिवार्य बना दिया।

ये आया "अडानी भक्ति" का एंगल 

2016 में झारखंड सरकार के साथ अडानी पॉवर लि. ने इसी बदलाव का हवाला देते हुए गोड्डा परियोजना की शर्तों में बदलाव की मांग की। छह अक्टूबर 2016 को झारखंड की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने राज्य की ऊर्जा नीति में वही बदलाव कर दिए जिनका प्रस्ताव कंपनी ने दिया था। इन बदलावों को आधार बनाकर अगले ही दिन दूसरे चरण के समझौते का प्रारूप तैयार कर लिया गया। इस समझौते पर सरकार और अडानी पॉवर लि. ने 21 अक्टूबर को दस्तखत कर दिये..अब अगर इसमे भी नही मानना तो एक मिनट,महालेखपाल जी ने भी कुछ प्रतिक्रिया दी थी..

चलिए दिखा ही देता हूँ।।

महालेखापाल की प्रतिक्रिया

झारखंड का महालेखापाल कार्यालय, जो सीएजी को रिपोर्ट करता है, ने 12 मई 2017 को झारखंड सरकार और अडानी पॉवर लि. के बीच हुए समझौते पर सवाल उठाए थे। उसका कहना था कि यह समझौता कंपनी को अनुचित तरीके से तरजीह देता है जिससे उसे गलत तरीके से फायदा होगा। उसका यह भी कहना था कि राज्य में मौजूद इस तरह के दूसरे ऊर्जा संयंत्र सरकार को कम और उन दरों पर बिजली दे रहे हैं जो पहले की ऊर्जा नीति के आधार पर तय की गई हैं। यहां गौर करने वाली बात यह है कि ऊर्जा नीति में हुए बदलाव पुराने संयंत्रों पर लागू नहीं हुए जबकि 2014 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते उन्हें भी अपनी खदानों से हाथ धोना पड़ा था। महालेखापाल कार्यालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि एक जैसे मामलों में सभी पक्षों के साथ हुए समझौतों की शर्तें भी एक जैसी होनी चाहिए।

लेकिन मानेंगे क्यों?? नमकहरामी जो करनी है अडानी जी को,नही समझे? चलिए समझाता हूँ...

अडानी की जालसाजी 

जब अडानी समूह ने बांग्लादेश के साथ बिजली आपूर्ति का समझौता किया था तो उसने यह नहीं बताया था कि गोड्डा बिजली संयंत्र के लिए कोयला कहां से आएगा। अप्रैल 2017 में भारत के पर्यावरण मंत्रालय के पास अडानी पॉवर ने जो दस्तावेज जमा किए थे उनमें कोयले का व्यापार करने वाली इंडोनेशिया की एक कंपनी के साथ उसके समझौते की जानकारी दी गई थी। अडानी पॉवर लि. का यह भी कहना था कि ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका में मौजूद खानों से भी गोड्डा के लिए कोयले की आपूर्ति की जा सकती है. मार्च 2018 में ऑस्ट्रेलिया में अडानी एंटरप्राइजेज के मुखिया जयकुमार जनकराज ने ऐलान किया कि गोड्डा परियोजना के लिए कोयला आस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड प्रांत की कारमाइकल खदान से भेजा जाएगा। हालांकि वहां आज भी इस खदान को अडानी समूह को देने के खिलाफ काफी विरोध हो रहा है।

अब शायद किसी को पता भी नही होगा की इसमे लूट कैसे रहा है अडानी??

चलिए दिखाता हूँ...

Godda-Jharkhand
ऑस्ट्रेलिया से भारत  8830 Km दूर भेजे गए कोयले से गोड्डा में बिजली उत्पादन की लागत बढ़नी ही है 

देश को लूटने का खेल 

Simon Nicholas  
आई.ई.ई.एफ.ए. के विशेषज्ञ साइमन निकोल्स
आस्ट्रेलिया से आने वाले कोयले के चलते गोड्डा परियोजना में बनने वाली बिजली की लागत काफी बढ़ जाएगी। इस वजह से या तो झारखंड को अडानी पावर से काफी महंगी बिजली खरीदनी पड़ेगी या फिर इस प्लांट से उसे कुछ भी नहीं मिलेगा। अप्रैल 2018 में प्रकाशित अपनी एक रिपोर्ट में इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनैलिसिस (आईईईएफए) के विशेषज्ञ साइमन निकोल्स ने लिखा है कि ‘इतना पैसा खर्च करके एक ऐसे राज्य में कोयला आयात करने का कोई मतलब नहीं बनता जो कोयला खनन के मामले में भारत में सबसे आगे है।

अब आप लोग को तो यह भी नही पता होगा की इतना कुछ वह कर क्यों रहा है ??

भाई किसके लिए कर रहा है??चलिए बताता हूँ...

क्या है मुख्य वजह इस घपले की? 

बांग्लादेश के साथ समझौता-

गोड्डा ऊर्जा परियोजना ने जून 2015 में तब आकार लिया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ढाका गए थे। वहां प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ मुलाकात में उन्होंने अनुरोध किया था कि बांग्लादेश में भारतीय ऊर्जा कंपनियों को भी मौके दिए जाएं।

Modi in bangladesh
2015 में बांग्लादेश के दौरे पर शेख हसीना के साथ प्रधानमंत्री मोदी का चित्र 

अब मोदी जी ठहरे कंग्रेस के दुश्मन तो वो तो कांग्रेस के खिलाफ कुछ ना कुछ रोक तो लगाएंगे ही ना...

देखिए

कांग्रेस सरकार में क्या थी योजना

बांग्लादेश में बिजली की भारी कमी है। वहां न तो कोयले और पेट्रोल के भंडार हैं और न जलविद्युत् परियोजनाओं की खास संभावना।  इसके चलते उसे या तो अपने पड़ोसियों से बिजली आयात करनी पड़ती है या फिर अपने यहां ऊर्जा परियोजनाएं बनाने के लिए बाहर से आर्थिक और तकनीकी सहायता लेनी पड़ती है।

2010 में भारत ने बांग्लादेश को एक अरब डॉलर का कर्ज देने का ऐलान किया था।  यह कर्ज बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं के लिए था।  उसी साल भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एनटीपीसी और बांग्लादेश पॉवर डेवलपमेंट बोर्ड ने एक समझौता किया।  इसके तहत बांग्लादेश में कोयले से चलने वाले दो ऊर्जा संयंत्र बनाए जाने थे।  इनमें से हर एक की क्षमता 1320 मेगावॉट तय की गई थी।

चोर चोर मौसेरे भाई

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद चीज़ें बदल गईं। छह जून 2015 को अपनी पहली ढाका यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत बांग्लादेश के 2021 तक 24,000 मेगावाट ऊर्जा के लक्ष्य को पाने में उसकी मदद कर सकता है। उन्होंने ‘बांग्लादेश में ऊर्जा उत्पादन, प्रसारण और वितरण क्षेत्र में भारतीय कंपनियों के प्रवेश के लिए’ प्रधानमंत्री शेख हसीना से मदद मांगी.

ठीक अगले दिन बांग्लादेश पावर डिवेलपमेंट बोर्ड ने अडानी पावर लिमिटेड और रिलायंस पावर लिमिटेड द्वारा बनाए जाने वाले पावर प्रोजेक्ट्स से बिजली खरीदने के लिए समझौतों की घोषणा कर दी।

आधिकारिक पुष्टि

11 अगस्त 2015 को अडानी ग्रुप और बांग्लादेश सरकार ने एम.ओ.यू. पर हस्ताक्षर किए। जबकि दो साल बाद अप्रैल 2017 में शेख हसीना की नई दिल्ली यात्रा के दौरान इम्पलीमेंटेशन एग्रीमेंट पर मुहर लगाई गई। हालांकि बिजली की कीमत तय करने का काम बिजली खरीद समझौते के वक्त होने वाली बातचीत पर छोड़ दिया गया।अब देश भले जाए गर्त में फायदा तो विदेशी ही उठाएंगे।

विदेशियों पर मेहरबान, देश की समस्याओं से अनजान? 

आइ.ई.ई.एफ.ए. के साइमन निकोल्स के मुताबिक बांग्लादेश द्वारा खरीदी जाने वाली बिजली की ‘तय कीमत 8.6127 अमेरिकन सेंट्स या 5.82 रुपए प्रति इकाई है. इस कीमत में क्या शामिल किया गया है क्या नहीं, इस बारे में (बांग्लादेश पावर डिवेलपमेंट) बोर्ड कोई जानकारी नहीं देता.’ यह कीमत उस कीमत से काफी ज़्यादा है जो बांग्लादेश प्रतिस्पर्धात्मक नीलामी के ज़रिए अन्य भारतीय कंपनियों से खरीदी जा रही बिजली के लिए चुका रहा है।  मसलन नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन को फरवरी 2018 में एक बोली जीतने के बाद बांग्लादेश को प्रति इकाई 3.42 रुपए की दर से 300 मेगावाट बिजली आपूर्ति करने का ठेका मिला है।

कार्य क्षेत्र की वास्तविक स्थिति

भारत में सबसे ज़्यादा कोयला झारखंड के पास होने के बावजूद यहां बिजली की कमी है। यहां कुल 59 फीसदी घरों में बिजली के कनेक्शन हैं जबकि देशभर में यह दर 82 फीसदी है। यहां पर प्रति व्यक्ति बिजली खपत का आंकड़ा मात्र 552 यूनिट्स ही है जो कि देश के औसत का लगभग आधा है।

पहले की नीति क्या कहती थी

2012 में बनाई गई राज्य की ऊर्जा नीति ने थर्मल पावर कंपनियों को राज्य में अपनी परियोजनाएं शुरू करने के लिए तमाम तरह के प्रोत्साहन दिए।  शर्त यह थी कि उत्पादित ऊर्जा का एक चौथाई हिस्सा सस्ती कीमत पर राज्य को दिया जाये।

अब अडानी की नीति क्या कहती है?

मुंबई में भारत सरकार के मेक इन इंडिया सप्ताह के दौरान 17 फरवरी 2016 को अडानी पावर लिमिटेड ने गोड्डा परियोजना के लिए झारखंड सरकार के साथ पहले चरण का एम.ओ.यू. साइन किया, इसमें कहा गया कि परियोजना में बनी पूरी बिजली बांग्लादेश भेजी जाएगी और कंपनी राज्य को जाने वाला एक चौथाई हिस्सा ‘अन्य स्रोतों’ से लेकर राज्य को देगी, जिसकी कीमत गोड्डा परियोजना के हिसाब से निर्धारित की जाएगी। यह प्रावधान इससे पहले के ऐसे समझौतों से बिलकुल अलग है।

Jharkhand Secretariat
समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करते उद्योग निदेशक के.रविकुमार (दाएं) और अडानी के अधिकारी


अगर अडानी छत्तीसगढ़ की कोरबा (पश्चिम) परियोजना (जिसे अडानी अधिग्रहीत कर रहे हैं) में तैयार बिजली झारखंड को देते हैं तो यहां पैदा की गई बिजली की कीमत गोड्डा जैसी नई परियोजना में तैयार बिजली की कीमत से काफी कम होगी’ आइ.ई.ई.एफ.ए. के टिम बकले कहते हैं, ‘इस तरह के प्लांट से उत्पादित बिजली की कीमत गोड्डा से उत्पादित बिजली की दर पर लेने का मतलब है अडानी को ज़बरदस्त मुनाफा।

सरकारी अनुरोध अडानी का

अडानी द्वारा मांगा गया मुख्य बदलाव यह था कि उसके द्वारा झारखंड को दी जाने वाली पूरी (25 फीसदी) बिजली की कीमत का निर्धारण वैरियबल और फिक्स्ड घटकों को जोड़कर किया जाए या फिर उसे सस्ता कोयला दिया जाए। अडानी का कहना था कि ‘कोल माइंस (स्पेशल प्रॉविजंस एक्ट 2015) के लागू हो जाने के बाद कोल ब्लॉक का आवंटन राज्य सरकार की सिफारिश पर संभव नहीं है। ऐसे में सभी को बराबरी का मौका देने के लिए झारखंड सरकार को पूरी परियोजना की ज़रूरत भर का कोयला उसे रियायती दामों पर उपलब्ध कराना चाहिए।

अडानी और सरकार की मिलीभगत

ऊर्जा विभाग को एम.ओ.यू. में बदलाव के लिए लिखी अपनी चिट्ठी के ठीक एक हफ्ते बाद अडानी पावर ने 17 अगस्त, 2016 को सरकार द्वारा संचालित झारखंड राज्य खनिज विकास निगम को एक पत्र लिखा। इसमें उसने गोड्डा परियोजना के लिए कोल लिंकेज दिये जाने की मांग की थी. लेकिन दो सितंबर को निगम ने कंपनी की यह मांग यह कहते हुए अस्वीकार कर दी कि वह कोल इंडिया लिमिटेड से इलेक्ट्रॉनिक नीलामी के जरिए ही कोयला प्राप्त कर सकती है। 

इसके करीब डेढ़ महीने बाद ही छह अक्टूबर, 2016 को झारखंड के ऊर्जा विभाग ने राज्य की ऊर्जा नीति में बदलाव का प्रस्ताव जारी कर दिया।  इस प्रस्ताव के जारी होने के ठीक एक दिन बाद और इसके गजट में प्रकाशित होने से पहले ही, अडानी पावर लिमिटेड और राज्य सरकार ने नई नीति के हिसाब से दूसरे चरण के एम.ओ.यू. का एक संशोधित ड्राफ्ट तैयार कर लिया। इसके मुताबिक झारखंड द्वारा कोल लिंकेज न दिये जाने पर (जो कि वह कानूनी रूप से दे ही नहीं सकता) अडानी की गोड्डा परियोजना से मिलने वाली पूरी 25 फीसदी बिजली उसे पूरी कीमत (वैरियेबल + फिक्सड) पर खरीदनी है।  जबकि पहले झारखंड को 12 प्रतिशत बिजली सिर्फ वैरियेबल कीमत पर मिलनी थी।  यानी अब राज्य को बिजली के लिए पहले से लगभग दोगुनी फिक्स्ड कीमत देनी है।

जिसमें  सरकार भी सच्ची वफादारी निभा रही है अडानी के साथ..

 चलिए बताता हूं कैसे..

सरकार का अडानी की वफादारी का परिणाम 

राज्य के महालेखापाल कार्यालय के ऑडिटरों द्वारा तैयार हिसाब के मुताबिक पुराने समझौते के तहत झारखंड हर महीने अडानी पावर लिमिटेड से 72.40 करोड़ रुपये की बिजली खरीदता। लेकिन अब उसे हर महीने 97.10 करोड़ रुपये की रकम चुकानी होगी. यानी राज्य सरकार को अब हर महीने 24.7 करोड़ रुपये ज्यादा चुकाने होंगे। एक साल में यह रकम होती है 296.40 करोड़ रुपये और चूंकि अडानी पावर लिमिटेड का बांग्लादेश से 25 साल का समझौता हुआ है तो इस हिसाब से इन सालों में झारखंड इस कंपनी को अतिरिक्त 7,410 करोड़ रुपयों का भुगतान करेगा। अब देखिए ना कम से कम पर्यावरण का तो ध्यान रखती ही है सरकार की इतनी भी गर्मी अच्छी बात नहीं है।

हद पर हद सरकारी मदद

अडानी की गोड्डा परियोजना को इसे चिर नदी से हर साल तीन करोड़ 60 लाख क्यूबिक मीटर पानी लेने की अनुमति दी गई है। वह भी तब जब कंपनी ने चार बार मौका मिलने के बाद भी पर्यावरण मंत्रालय के एक्सपर्ट पैनल के सामने नदी के बहाव और जलगृहण क्षेत्र से जुड़ी जानकारी जमा नहीं कराई।  श्रीपद के मुताबिक, ‘यह परियोजना में इतनी विशाल मात्रा में पानी की खपत होने की वजह से इसे पर्यावरण मंत्रालय की तरफ से रोका गया था।


रीसर्च व लेखन : हरशितेश्वर मणि त्रिपाठी 


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