"इफ यू हैव एनि प्रॉब्लम, प्लीज कॉल मी सीता"
वह साठ के दशक का दौर था जब राजकुमारी और उस इंसान के बीच प्रवाहित, प्रेम की पराकाष्ठा अपने भावों को इस हद तक तल्लीन कर लिया था, कि एक प्रिंसेस की प्रेम कहानी को प्रकाशित करने वाला अखबार; उसके उस दबी जुबान में न बोल पाने वाले प्रेम का ढाल बन गया था, जो राजकुमारी के भीतर प्रिंस ओमान के विवाह प्रस्ताव को ठुकराने और अपने प्रेमी के खातिर अपना स्टैंड लेने की हिम्मत ला दिया था।
राजकुमारी ने अपने भाई से खुल कर कह दिया था ; "इफ यू हैव एनि प्रॉब्लम, प्लीज कॉल मी सीता"
वह नहीं चाहती थी कि किसी भी कीमत में उनके प्यार को यह सच्चाई पता चले कि वह सीता नहीं नूरजहाँ है।
"रॉयल स्टेट हैदराबाद की प्रिंसेस नूरजहाँ की 'सीता महालक्ष्मी' बनने की कहानी ही पूरे 'सीता रामम्' फिल्म की जान है।"
एक अनाथ सैनिक, जिसका परिवार पूरा देश था।
भारतीय सेना में पदस्थ एक अनाथ सैनिक लेफ्टिनेंट राम, जिसने सारे देश को ही अपना परिवार मानकर खुद को अनाथ होने के दंश से बचाता रहा था।
पाकिस्तान से भारतीय सीमा में घुसे काश्मीर के अमन और शांति को भंग करने वाले उपद्रवियों को मार गिराकर सैकड़ो कश्मीरियो को मजहबी आग से बचाकर हीरो बन चुका था लेफ्टिनेंट राम। इसी दरमियान इंडियन रेडियो के एक इंटरवियू में लेफ्टिनेंट राम के अच्छाइयों का थोड़ा सा प्रमोशन हुआ और सारे देश से उनको मिल रही अपनेपन से भरी चिट्ठियों में उनके नाम एक बगैर पते वाली चिट्ठी मिली।
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सीता रामम फिल्म के दोनों प्रमुख पात्र मृणाल ठाकुर व दलकीर सलमान |
चिट्ठी एक लड़की की थी। वह खुद को लेफ्टिनेंट राम की प्रेमिका और पत्नी बता रही थी और नाम बताया था "सीता महालक्ष्मी"।
मजहबी आग के बीच भी मजहब की दीवार खड़ी न होने दिया, राम और नूरजहाँ ने।
फ़िल्म के इंटरवेल तक आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि सीता महालक्ष्मी के किरदार में किस कदर नूरजहाँ के किरदार को सहेज कर रखा गया था। आप सोच भी नहीं पाएंगे कि यह प्रेम कहानी एक मुश्लिम राजकुमारी नूरजहाँ और हिन्दू सैनिक राम के बीच चल रही है।
पूरी फिल्म में मजहब को लेकर भड़काए गए कश्मीरियों की कहानी है पर नूरजहाँ और राम के किरदार में आपको कहीं भी यह देखने को नहीं मिलेगा कि उनकी प्रेम कहानी में कहीं भी मजहब की दीवार खड़ी हुई हो। फ़िल्म को बैलेंस रखने की यह सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है।
आखिरी चिट्ठी ने पूरे फ़िल्म की कहानी कह दी।
'तारिक़' पाकिस्तान आर्मी में कार्यरत रहते है जिनकी पोती आफरीन लंदन में पढ़ रही होती है।
हिंदुस्तान से नफरत की वजह से आफरीन लंदन में एक हिंदुस्तानी की कार में आग लगा दी थी जिसका जुर्माना 10 लाख लगा और जब उस जुर्माने का पैसा लेने वो अपने दादा के पास पाकिस्तान आयी तो पता चला उनके दादा तारिक मर चुके थे।
आफरीन अपने दादा से भी नफरत करती थी पर 10 लाख के एवज में एक हिंदुस्तानी से माफी मांगने की जगह उसने अपने दादा से माफी मांगना सही समझा था।
दादा के मरने के बाद वसीयत के पैसे लेने के लिए वकील ने आफरीन के आगे एक शर्त रखी जिसमे राम की लिखी आखिरी चिट्ठी को सीता तक पहुँचाना था।
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आफरीन के किरदार में रश्मिका (बाएं) राम के किरदार में सलमान व सीता के किरदार में मृणाल |
इस शर्त को पूरा करने के बाद ही वसीयत की रकम आफरीन को मिल पाती।
चिट्ठियों के पता और राम-सीता के खोज की भागदौड़ ने पूरे कहानी को 1985 से 1965 के बीच बांध कर रखा और बहुत ही महीनता से दोनों दशकों को आपस मे कनेक्ट किया।
चिट्ठी पहुँचाने के लिए राम और सीता की खोज में ही पूरी फ़िल्म की कहानी चलती रही।
फ़िल्म के डायलॉग आपको आँखे भिगोने पर मजबूर कर देंगे।
अगर आप जरा सा भी प्रेम को समझते है तो पूरी फिल्म में आपको मजा आने वाला है। फ़िल्म की कहानी जानने की मजबुरी आपको पूरी फ़िल्म में रोक कर रखेगी। उसके पावरफुल डायलॉग आपको हँसने, मुस्कुराने और अंत मे आँखे भिगोने को मजबूर कर देंगे। फ़िल्म का सस्पेंस आपको अपने दोस्तों में फ़िल्म की कहानियां बताते वक्त तालियां बजाने पर मजबूर कर देगा।
फ़िल्म का लास्ट टच आपको कहानी से निकलने नही देगा।
बहुत ही सरल शब्दों में यदि कहा जाए तो एक बेहतरीन और यूनिक कंसेप्ट पर लभ स्टोरी को फिल्माया गया है जिसमे एक इंटररिलीजन लभ स्टोरी के साथ एक असली कहानी भी है।
असली कहानी का हिस्सा छोटा जरूर है पर फ़िल्म की कहानी के साथ में प्रेम कहानी को आगे बढ़ाया है। एक इंट्रेस्टिंग प्रेम कहानी होने के बावजूद, फ़िल्म की असली ने कहानी खुद को सेंटर ऑफ अटेंशन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
कहानी का क्लैमेक्स देखने के बाद आपका मन, फ़िल्म के खत्म होने के बावजूद उसकी कहानी से बाहर निकलने के लिए गवाही नहीं देगा।
फ़िल्म की बहुत से सस्पेंस भरी कहानियां समीक्षा नहीं कि जा सकती क्योंकि आपको फ़िल्म में फिर वह रोमांच नहीं मिलेगा।
पॉपुलेरिटी के बावजूद फ़िल्म में रश्मिका के कद को छोटा कर दिया है मृणाल के अभिनय ने।
हानु राघवापुड़ी के निर्देशन में बनी सीता रामम् में, वर्ल्ड वाइड सुपरहिट फिल्म पुष्पा की फेम रश्मिका मंधाना के होने के बावजूद, मृणाल ठाकुर को फ़िल्म का सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण किरदार प्रिंसेस नूरजहाँ का अभिनय करने का मौका दिया गया। इस किरदार को मृणाल ने बेहद ही दमदारी से निभाया जिससे रश्मिका की पॉपुलेरिटी बावजूद वह फ़िल्म का सेंटर ऑफ अट्रैक्शन बनी रही।
दलकीर सलमान ने भी हमेशा की तरह अपने अभिनय लेफ्टिनेंट राम की भूमिका में खुद को सौंप कर दिलकश बना दिया।
फ़िल्म की शुरुआत से लेकर अंत तक जो इस कहानी के होने का कारण रही उस आफ़रीन का किरदार रश्मिका मंधाना ने अपनी उतनी ही चुलबुलता और नखरों के साथ निभाया जो उनके किरदार में पूरी स्क्रिफ्ट के साथ-साथ पब्लिक की भी डिमांड थी।
फ़िल्म में छोटा सा किरदार भूमिका चावला ने भी निभाया है जो कि समीक्षा योग्य तो नही है पर एक बड़े नाम की अभिनेत्री होने का छाप छोड़ती है।
बहुत सारे पॉपुलर चेहरो ने इस फ़िल्म में काफी छोटा-छोटा किरदार निभाया है जबकि अपेक्षाकृत कम पॉपुलर चेहरों ने पूरी फिल्म में समा बांध रखा था।
सीता-रामम् एक सधी हुई बेहतरीन प्रेम कहानी है जो आप अपने पूरे परिवार के साथ मे, बैठ कर देख सकते है।
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