"छेनु का पनीर पुलाव"
70 साल से बनवारी के हाथ की 'दाल-चावल' खा रहे परिवार के लोगों को खाने में स्वाद की कमी लगने लगी थी।
ठीक है! रोज-रोज दाल-चावल खाकर कोई भी बोर हो ही जाता है।
फिर अचानक से 2014 में छेनू की एंट्री हुई और उसने उस परिवार में प्रस्ताव रखा कि वह सबको पनीर मखनी और कश्मीरी पुलाव जैसे लजीज पकवान बनाकर खिलाएगा, बस बनवारी की जगह उसको बावर्ची रख ले।
पटिदारों ने छेनू को रखने के लिए हंगामा मचा दिया।
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बहुत हुई एक रेसिपी की मार, अबकी बार.... |
निष्कर्ष यह निकला कि 2014 में बुजुर्ग बनवारी को निकाल दिया गया और नया बावर्ची छेनू को रख दिया गया..
छेनू ने घर मे एंट्री मारते ही सबसे पहले तो तरह-तरह के पकवान खिलाने के रोज-रोज मनगढ़ंत कहानियां सुनाता रहा और परिवार वालो को स्वाद की उत्सुकता की तरफ खींचता रहा।
छेनू ने दाल भात से स्वाद की तरफ जाने को लालायित परिवार और पटिदारों को समा बांध कर अपने वश में किया और अपने 'मन की बात' बतलाता रहा।
फिर एक दिन किचन के पुराने महंगे, फूल और तांबे-पीतल के बर्तन बेच दिया और उसकी जगह अपने सगे भाई की दुकान से चीनी मिट्टी की प्लेटें मंगवाना चालू कर दिया।
कारण यह दिया कि इन बर्तनों के बगैर डिश को परोसने में मजा नहीं आएगा।
बड़े दिनों बाद घर मे कुछ नया स्वाद आने को था तो सबने स्वीकार भी कर दिया।
अभी दो दिन भी नहीं हुआ ठीक से किचन सम्हाले अचानक से एक और लिस्ट तैयार हुई किचन की..
अबकी बार घर के उगाए अनाज और सब्जियों के बदले में पैकिंग वाले अनाज और सब्जियों को स्पेशल एडिशन के नाम पर छेनू के चाचा की दुकान से लाना परमानेंटली तय हुआ।
दाल और चावल से लेकर सब्जी और मसालों के खरीददारी का डिसाइडिंग अथॉरिटी छेनू को मिल गया सिर्फ पनीर मखनी और कश्मीरी पुलाव का स्वाद चखने के लिए।
आखिरकार छेनू का बावर्चीखाने को सम्हालना और पनीर पुलाव तैयार करना शुरू हुआ।
2014 से वर्तमान तक वह परिवार आज भी स्वाद ले रहा था उसी छेनु के पनीर मखनी और कश्मीरी पुलाव का...
ज्यादा तेल मसाला खाने के भी दुष्परिणाम होते ही है, ऊपर से ये तो स्वाद के लालायित लोगो को खिलाए गए व्यंजन है, ऐसे कैसे पच जाएंगे..
बावर्ची ने बीते 8 सालों तक इन व्यंजनों को बनाया वो भी बिना परिवार को एक भी रेसिपी बताए की खाने में आखिर मिला क्या क्या रहा है। जब भी कोई परिवार का सदस्य, कभी भी नमक या मसाला तेज होने का कारण पूछता तो छेनू बार बार 'दाल भात' खाने की आदत को कारण बतलाकर परिवार पर ही अपना दोष मढ़ देता था। बोलता था कि बनवारी ने आज तक कभी पनीर मखनी खिलाया ही नही तुमको तो कहाँ से जानोगे उसका स्वाद।
परिवार की मजबुरी बन जाती थी छेनू के बात को मानने की।
"असल में छेनू को खाना बनाना तो नही आता था, पर वो मूर्ख अच्छा बना लेता था।
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पनीर पुलाव खाइए आत्मनिर्भर बन जाइये |
उसने पूरे किचन के महंगे बर्तन बेच डाले, अपने रिश्तेदारों को बर्तन और अनाज-सब्जियों के टेंडर दिलवा डाले।
छेनू का उद्द्येश्य सिर्फ अपना और अपने रिश्तेदारों के लिए मुनाफा कमाना था, ना कि किचन में बावर्ची बनकर खाना बनाना था। परिवार छेनू के चंगुल से बाहर ही नहीं निकल पाया और छेनू स्वाद के मायाजाल में फँसाकर पूरा एयरकंडीशनर किचन हड़पने का प्रबंध कर लिया था।"
कालांतर के साथ ज्यादा तेल मसाला भी सेहत खराब करने लगा, जिसके कारण उन लजीज व्यंजनों का असर दिखना चालू हो गया था...
एसिडिटी के साथ लिवर खराब- निष्कर्ष तेल मसाला बन्द।
अपच के कारण खाने में पाबंदियां लग गयी- निष्कर्ष मन पसन्द खाना (पनीर मखनी) बंद
खट्टी डकार और उल्टी के कारण लीवर खराब- निष्कर्ष जबरन का दवाइयों पे खर्चा वो भी छेनू के मामा के मेडिकल स्टोर से।
दस्त और पेचिस से किडनी खराब- निष्कर्ष घर दुआर छेनु को ही बेचकर, छेनू के मौसा के अस्पताल में पूरा परिवार डायलिसिस करवा रहा है।
परिवार को अभी भी लग रहा है कि उनकी बीमारियों के इलाज का प्रबंध सही वक्त पर छेनू कर दे रहा है और वही असल मे उनका सबसे बड़ा एहसानदार है क्योंकि बनवारी के रिश्तेदारों के न मेडिकल स्टोर थे ना ही अस्पताल...
नोट:- परिवार को ज्यादा बीमार पड़ने पर डॉक्टर भी सात्विक आहार अर्थात दाल भात खाने की सलाह दिया है ताकि वह कम से कम जिंदा रह सके..
देखना यह है कि परिवार अभी भी बनवारी के हाथ का 'दाल चावल' याद रखता है जो कम से कम उसे बीमार तो नहीं किया या फिर होने वाली मृत्यु के, कफ़न और अन्य सामग्री को भी छेनू के रिश्तेदारो से खरीदने के लालच मे छेनू से सम्बंध बनाए रखता है।
परिवार स्वयं आश्रय पर आ चुका है और बनवारी को चाह कर भी दोबारा नौकरी पर रख नहीं सकता है जबकि छेनू परिवार को कंगाल करने के बाद मुफ्त सेवा बिल्कुल नहीं दे रहा।
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