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"टीम-बी ओवैसी" की दुकान पर मौजूद गोदी मीडिया का फेवरेट पकवान - Asaduddin Owaisi a suitable Shopkeeper for Media

Asaduddin Owaisi on Hijab vivad

इट्स राइट टू प्राइवेसी, इट्स राइट टू लिव !!


असल मे इस आग को ओवैसी साहब(Asaduddin Owaisi)ने भी कम हवा नहीं दिया है।

हिज़ाब का मामला उठते ही , सत्ता के तलवे को तराशने वाले तथाकथित मेन स्ट्रीम मीडिया के ठगिया के चाटुकार (Godi Media), एक सेंसेशनल मसले की खोज में निकल पड़े।

सारे भेड़िए का  झुंड बनाकर पहुँचे ओवैसी साहब के पास।
ओवैसी साहब ने भी उनकी आवभगत की और भरपूर मसाला देकर विदा किया।
आखिर उनकी भी रोजी रोटी तो इन्हीं तलवाचाटों के सहारे चलनी है। 

उनके उगले जहर को भी डिस्ट्रीब्यूटर तो चाहिए ही।

वैसे तो ओवैसी साहब को संविधान और मानवाधिकार का भरपूर नॉलेज था पर इस बार उन्होंने हिजाब को अपने आस्था के देवता पैगम्बर मोहम्मद साहब की मर्जी करार दिया।

अपनी कौम के लिए अपना हिजाब बैन पर अपना विरोध दर्ज कराया और पक्ष में आये कोर्ट के फैसले का स्वागत किया।


असल में होता क्या है कि धार्मिक मामलों में ये माइक वाले भेड़िए सीधे धर्म से जुड़े स्कॉलरो और धर्म की राजनीति करने वाले पॉलिटिशियन्स को टारगेट करते है।

वो जानते है ये धार्मिक स्कॉलर और पॉलिटिशियन्स ही उनके मजहबी मसालों की होलसेल दुकान चला रहे है।

ऐसी कंडीशन में इन धर्मगुरुओं और राजनेताओं के बयान ही इस बात को तय करतें है कि मजहब की यह आग डिस्ट्रीब्यूट होगी या डिफेंड होगी।

नो डाउट मुस्लिम गर्ल्स और लेडीज में भी हिजाब को लेकर परसेप्शन बंटा हुआ है। ऑडिएंस परसेंटेज ऊपर नीचे भले हो जाए पर बंटा तो हुआ है ही। 

हिजाब को लेकर 1% भी टीआरपी के लिहाज़ फेवरेबल कमेंट सत्ता की लगार में बंधे, नम्बर वन मीडिया वालों के लिए हंड्रेड परसेंट है। वो मौका हरगिज नहीं चूकेंगे क्योंकि उन्हें भी अपना दुकान धंधा देखना है।

सिंपल सी बात है, हिजाब बच्चियों और औरतों को पहनना है। वो हिजाब पहनेंगी या नहीं पहनेंगी इसकी डिसाइडिंग अथॉरिटी उन बच्चियों और महिलाओं के पास है, ना कि तुम्हारे। जब हिजाब या अन्य धार्मिक पहनावे उन्हें अच्छे लगते हैं या इससे उनकी आस्था जुड़ी है तो इसे वे निभाएंगी और जब कोई भी धार्मिक प्रतिबद्धता उनकी निजी स्वतंत्रता पर आघात करेगी वे ईरान की क्रांतिकारी महिलाओं की तरह खुद इसे निकाल कर फेंक देंगीl 

हाँ स्कूल कॉलेजेस में यूनिफार्म लगती है, 
तुम यूनिफॉर्म ही पहनोगे। 
हां अगर यूनिफार्म छोटा लग रहा तो सामूहिक रूप से यूनिफार्म के स्ट्रक्चर को लेकर विचार कर सकते हो।

तुम कोशिस भी मत करना उन्हें उकसाने का, उन्होने इस उकसावे को जहर बनाने की पीएचडी कर रखी है। 

सत्ता का बहुत बड़ा तंत्र हम दोनों को बिना मतलब की आग में ढकेलने को तैयार बैठा है। वो मौके को तलाश रहा है। उन्हें मौका ही मत दो। अमन के हरामियत पर इनकी दुकान चलती है। सब्र रखो। जुल्मों की सत्ता अपने आप बदल जाएगी। सब कुछ ठीक हो जाएगा। बस सब्र रखो।

बाकी ओवैसी साहब जैसे लोगों का बयान इस आग को कभी खत्म नहीं होने दे रहे। उनकी दुकान भले छोटी है पर कस्टमर भरपूर हैं। उन्हें ऑप्शन मत बनने देना। धर्म को लेकर की गई हर राजनीति खून का चढ़ावा मांगती है।
उन्हें ऑप्शन बनाकर पनपने दोगे तो तुम्हारे लिए ही नासूर बनेंगे।

बाकी रही बात हिज़ाब की तो...

"सिविल लाइफ में जिसको मन है हिजाब पहने, जिसको मन नहीं है मत पहने"

इट्स राइट टू प्राइवेसी, इट्स राइट टू लिव !!





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