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प्रेम को प्रेमियों ने नहीं, धूर्तों ने किया बदनाम- A Love Letter to Parents

Bagheshwar dham sarkar

"भारत देश महान है, कितने तेजस्वी लोग हैं यहां!"

अगर आप अब भी ना समझ पाए हों तो समझा दूं कि उक्त वक्तव्य एक विशुद्ध कटाक्ष है। जिससे आप किसी कीमत पर नहीं सहमत होंगे। आप इसलिए सहमत ना होंगे क्योंकि ये जानकर कि ये "वाक्य" एक कटाक्ष है, आप इसे तत्काल एट्रोसीटी (खुद के सम्मान की सेंध) मान लेंगे। और  मानें भी क्यों ना, अब जो मैं कहने जा रहा हूं। वो इसका ठीक उल्टा है

मैंने जो अभी-अभी कहा उसमें "भारत देश महान है" वाली लाइन को इग्नोर मारिये क्योंकि सिर्फ वो ही सत्य है इसलिये अब बाकी की लाइनें (जनता से जुड़ी ) को उल्टे अर्थों में ही लीजिए, चलिए उल्टे अर्थों के कुछ विकल्प देकर मैं इस लेख में आगे बढ़ता हूं----

"तेजस्वी" शब्द का विकल्प - मुर्ख, बुद्धू, कायर, डरपोक, गुलाम....आदि इत्यादि---- (सुविधानुसार, स्वादानुसार)

ऐसे लोगों के लिए ही प्रधनमंत्री जी ने फ़रमाया है----

Narendra Modi Memes

भारत देश महान है क्योंकि यहां की महान धरती ने कई महापुरुष जन्में हैं। ये कृष्ण की धरती है, ये राम की धरती है, ये बुद्ध, कबीर, नानक की भी धरती है। तो सवाल है कि इतने सारे ईश्वर, सदगुरुओं को क्योंकर इस धरती पर बार बार जन्म लेकर लोगों को इंसानियत का, प्रेम का, बंधुत्व का पाठ पढ़ाना पड़ा?.... ज़रा सोचिए!

क्या आदिकाल से सब कुछ ठीक था? अगर सबकुछ ठीक ही था तो इन महापुरुषों की वाणियां व्यर्थ हैं। वेद पुराण, उपनिषद आदि व्यर्थ हैं। व्यर्थ है फिर गीता आदि का ज्ञान, हमारे देश की जनता तो सर्वज्ञ है। है ना?

"क्यों लग रही है चोट? मेरे कथन कर रहे हैं ना बेचैन? तो सब्र रखिए और सुनिए"

दरहसल ये सभी महापुरुषों को इसलिए धरती पर आना पड़ा क्योंकि कुछ लोग अक्सर ढोंगियों और झोलाछाप महापुरुषों पर भरोसा कर लिया करते हैं। जी हां! जैसे झोलाछाप डॉक्टर होते हैं वैसे ही आदिकाल से झोलाछाप बाबाओं का ट्रेंड रहा है। ये बाबे किसी ना किसी प्रकार के चमत्कार दिखाते नज़र आ जायेंगे, और चमत्कार भी ऐसे जो प्रथम दृष्टया ही नकली और ओछे नज़र आएं। फिर भी हमारी पब्लिक इनको फुल भाव देगी। पूछो क्यों?.....इसके उत्तर में, इन्हें सर चढ़ाने वाली पब्लिक के लिए ऊपर दिए गए "तेजस्वी" शब्द के विकल्पों में से कोई एक मन ही में चुन लीजिए। 

ऐसे बाबा पहले के जमाने में खुद को ईश्वर का अवतार ही बता दिया करते थे। क्योंकि तब तक विज्ञान और तर्कों का भारी आभाव था इसीलिए लोग इनपर विश्वास भी कर लेते थे, इस चक्कर में हुआ कुछ यूं कि जिन कल्कि स्वरूप भगवान श्रीमन नारायण को कलिकाल के अंत में धर्म की रक्षा हेतु जन्म लेना था उन्होंने पिछले पांच हजार सालों में पांच हज़ार बार जन्म ले लिया। 

ऐसा मैं नहीं कह रहा ऐसा ये बाबे कहते थे, जिनके अनुसार वे खुद भगवान के अवतारी थे, उदाहरण के लिए एक बहुत प्रसिद्ध संप्रदाय है जिसका प्रभाव पश्चिमी भारत के कुछ इलाकों में है, उस संप्रदाय के संत, भगवत गीता के नीचे रखकर अपनी एक अलग गीता लोगों को भेंट करते हैं। उनके एक अलग नारायण हैं, जिसकी मूर्ति की वो पूजा करते हैं। उनका जो नारायण है उसे वे भगवान नारायण जी के समकक्ष रखकर पूजते हैं। इतना ही नहीं आपको बता दें कि उनके वाले नारायण का जन्म पिछले दो सौ सालों पहले ही हुआ था। है ना मज़ेदार? पर सत्य है। आगे नहीं बोलूंगा काहे से कि मैं भी पश्चिमी भारत में ही रहा हूं, और इस नकली नारायण के लोग असली वाले मधु-कैटभ हैं। और हम कोई ब्रह्मा जी नहीं कि नारायण जी हमारी रक्षा के लिए स्वयं बैकुंठ से उतर आएंगे।

तो मुद्दे कि बात है कि अब, आज के दौर में खुद को भगवान सिद्ध करने वाला पाखंड थोड़ा मुश्किल है। (राधे मां एक एक्सेप्शनल केस हैं) इसीलिए आजकल कुछ फैंसी बाबा उभरे हैं। ये बाबा टिपिकल और आउटडेटेड बाबाओं से काफी अलग हैं। ये दिखने में जवान हैं। ड्रेसिंग सेंस अच्छा है, मीडिया मैनेजमेंट भी टॉप क्लास है, सोशल मीडिया में फॉलोअर्स भी बेतहाशा हैं। पर इनकी ऑफलाइन बकैतियों और कुछ पाखंडों के कारण लोग इन तक खींचे चले आते हैं। इनकी एक्टिंग स्किल के तो क्या कहने, ये रो- रोकर ऐसे मार्मिक वृतांत सुनाएंगे कि बस आप दीवाने हो जाएं। ऐसे एक और बाबा थे जो इस वक्त तिहाड़ में हैं, ना उनकी कोई आशा बची है ना ही उनमें राम बचे...खैर!

ऐसे बाबा कुछ इस प्रकार दिखते हैं।

Pandit dhirendra krishna shastri biography
ढोंगी व झोलाछाप फैंसी बाबाओं का प्रतीकात्मक चित्र 

अब हाल ही में एक बकैत बाबा का एक प्रवचन सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ। ये बाबा मां -बाप के प्रति प्यार और प्रेमिका के प्रति प्यार की तुलना कर रहा था। जिसमें से वो प्रेमिका के प्रति प्यार को तुच्छ और मां बाप के प्रति प्यार को श्रेष्ठ बता रहा था।

चलो मान लेते हैं कि मां -बाप के प्रति प्यार श्रेष्ठ है। इसमें किसी को कोई शक नहीं। शक होना भी नहीं चाहिए, हमारे देश में हर एक चीज़ जो हमारा भरण-पोषण करती है उसे मां का दर्जा दिया जाता है, और वो हर एक चीज़ जो हमें कर्तव्यनिष्ठ बनाती है वो पिता तुल्य है। पर अब मैं इस बाबा को एक और विकल्प देता हूं।

अगर इसमें हैसियत है तो मां के प्रति प्रेम और बाप के प्रति प्रेम में से श्रेष्ठ प्रेम को चुनकर दिखलाए। इसमें यदि हैसियत है तो भाई -बहन के प्रेम की तुलना में, भाई-भाई के प्रेम और बहन -बहन के प्रेम में श्रेष्ठ प्रेम को चुनकर बतलाए। 

इस मूर्ख को कौन बतलाए कि जिस प्रेमिका के प्रेम की तुलना ये मां और बाप के प्रेम से कर रहा है, ये तो ठीक वैसा ही काम हुआ जैसे इसने मां और बाप को अलग अलग करके तुलना योग्य बना दिया। और तिस पर भी ये झोलाछाप यहीं नहीं रुका, इसने बॉलीवुड की फिल्मों को प्रेमी और प्रेमिका के प्रेम के अस्तित्व से जोड़ दिया। मानो कि जैसे,जब बॉलीवुड नहीं था तो लोग प्रेम ही नहीं करते थे? अगर ऐसा था तो, राधा और कृष्ण ने जो प्रेम की अद्भुत मिसाल प्रस्तुत की है वो झूठी है? अगर ऐसा है तो कालीदास को आज से दो हजार साल पहले अभिज्ञान- शाकुंतलम जैसे श्रृंगार रस (रोमांस) से भरपूर नाटक को रचने की क्या जरूरत आन पड़ी थी? कुमारसम्भव, मेघदूतम, हीर-रांझा, लैला मजनू, देवदास, गीतांजलि आदि प्रेम पर, बॉलीवुड के अस्तित्व से बहुत पहले लिखे गए सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ हैं। 

ये मूढ़, प्रेमी प्रेमिका के प्रेम को वासना से जोड़ता है। इसे कोई बतलाए कि वासना एक बात है, और प्रेम दूसरी बात है। प्रेम के साथ वासना हो सकती है, पर वासना के कारण प्रेम का होना ये कतई नहीं हो सकता। अगर बात सिर्फ वासना की है तो सभ्य समाज की नाकों के नीचे इतने सारे वैश्यालय क्यों संचालित हो रहे हैं? क्या ये वैश्यालय बॉलीवुड की देन हैं? पर ये भी तो आदिकाल से चली आ रही परंपरा हैं। वैश्यालय किस युग में नहीं थे? दरहसल इन वासनाओं,हिंसाओं, बलात्कार, आदि के पीछे और दूजा कोई जिम्मेदार नहीं। बल्कि इस तरह के मूढ़ बाबा ही जिम्मेदार हैं। ये आपके अंदर से प्रेम मार देना चाहते हैं, ये आपके अंदर से जिज्ञासा को समाप्त कर देना चाहते हैं, ये आपको मूढ़ से और बड़ा मूढ़ बना देना चाहते हैं, पर आप हैं कि दुविधा में जिए जा रहे हैं। 

अब आप कहेंगे कि दुविधा कैसी? वो ऐसे कि प्रकृति ने आपको आपके जैसा बनाया है, इस दुनिया में कोई भी घटना यूं ही घटित नहीं होती। उसके पीछे प्रकृति की एक सुनियोजित व्यवस्था है, आपका दिल एक मिनट में कितनी बार धड़कता है, आप की श्वास में ऑक्सीजन की मात्रा कितनी है, आपके खून में प्लेटलेट्स की संख्या क्या है, आपका भोजन ऊर्जा में और उसके विषाक्त कण, मल में कैसे परिवर्तित होंगे इस सबकी व्यवस्था है, जिसपर आपका नियंत्रण नहीं है। आप इन गतिविधियों को संचालित नहीं कर रहे हैं। इसीलिए आप इसके लिए उत्तरदायी नहीं हैं, और अगर आप इन गतिविधियों से कोई भी छेड़छाड़ करते हैं या इन गतिविधियों में कोई भी छेड़छाड़ होती है तो उसके बुरे परिणाम आपको भुगतने के लिए तैयार होना होगा।

ठीक उसी प्रकार प्रकृति ने ( ईश्वर ने) आपके लिए प्रेम करने की और प्रेमी से शारीरिक संबंध बनाने की पूरी व्यवस्था की है। हम सभी को पता है कि जब हम आनंदित होते हैं तो डोपमाइन हार्मोन के कारण हमारा आंनद और प्रगाढ़ होता है। जब हम रति कार्य में संलग्न होते हैं तो ऑक्सीटोसिन हार्मोन हमारे रति की भावना का आधारभूत होता है। हमारे संभोग के दौरान टेस्टोस्टेरॉन और ओस्ट्रोजन हार्मोन शिशु की प्राप्ति में मददगार साबित होते हैं। ये शिशु, वही शिशु है जो आपकी वासना के कारण, आपके हार्मोन की पुकार के कारण उत्पन्न हुआ है। आपके ही गुण धर्म हैं इसमें.....ये भी मनुष्य है, पर आपके अनुसार क्या ये उस प्रेम, या कामुकता का उतना पात्र नहीं है, जितना की आपकी पात्रता थी? 

बात प्रेम और कामुकता की और उसकी पात्रता की नहीं है, यहां खेल कुछ और है। अब यहां भूमिका सामने आती है इन झोलाछाप बाबाओं की, ये झोलाछाप बाबे अधिकतर जाति से एक "विशेष वर्ग" के होते हैं, वो वे जिस वर्ग के हैं उस वर्ग में अंतर्जातिय विवाह एक बहुत बड़े अपराध के तौर पर देखे जाते रहे हैं। चूंकि मैं जन्म से इसी वर्ग के बीच पला बढ़ा हूं इसलिए मुझे इस वर्ग का दोहरा चरित्र बहुत अच्छे से दीख पड़ता है। एक तरफ तो ये लोग उस प्रेम की मुखालफत करते हैं, जिसे ईश्वर ने इंसान को भेंट में दिया है दूसरी ओर इनके पूवर्जों का तीन- तीन विवाह का ट्रैक रिकॉर्ड रहा है। उदाहरण के लिए मुझे ननिहाल पक्ष से जानने को मिला था कि मेरी नानी के पिता जी ने तीन विवाह कर रखा था, जिनसे उन्हें आधा दर्जन से अधिक संताने थी। और ये कोई आज के ज़माने की बात नहीं, आज ये हो पाना कानूनी तौर पर संभव भी नहीं है, ये बात तकरीबन सौ साल पुरानी है, यानि कि, देश काल परिस्थिति के अनुसार अगर आप समाज को, या उसके कुकृत्यों को देख रहे हैं तो आप मुर्ख हैं। मेरे कई रिश्तेदार हैं जिन्होंने शादी के अतिरिक्त संबंध बनाए हैं जिसे अमूमन "एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर" कहते हैं। ये दोहरा चरित्र क्यों? 

मैं बतलाता हूं क्यों। क्योंकि प्रकृति के बनाए नियमों पर आप अपने थोथे उसूल थोपना चाहते हैं तो आप अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे होते हैं।

हमारा समाज सेक्स के बारे में बात करने से बचता है। हमारे स्कूल और कॉलेजेस में सेक्स एजुकेशन का भी भारी आभाव है। ये विषय भी हम सभी के लिए एक आपत्तिजनक विषय है, परंतु इसके बिना कोई भी संतान प्राप्ति भी नहीं कर सकता। चूंकि यह कामुकता का विषय है, और इसे ज़ोर जबरदस्ती से नहीं बल्की इच्छा होने पर अपने साथी की रजामंदी पर आप आनंद से भोगते हैं। इसमें आप जबरदस्ती कर भी नहीं सकते। ये आप ही अंतर्पुकार है ये आपकी गहराई से उपजी इच्छा है.....अब सवाल ये है कि, अगर ये आपकी इच्छा है, आपकी रजामंदी है,  तो इतने अंकुश क्यों? बात ना करने से तो समस्या बढ़ती ही है। चूंकि ये आपत्ति जनक विषय है इसलिए हमारे समाज का कोई भी बच्चा, मां बाप से खुलकर इस विषय में बात नहीं कर सकता। वे उसे इसकी इजाज़त ही कहां देंगे कि वो ऐसा सोचे भी।

जब वो बच्चा परिपक्व होता है, तो उसके शारीरिक बदलाव इस उसे प्रेम के प्रति आकर्षित करते हैं। अब ये आकर्षण हर किसी के प्रति नहीं हो सकता। जैसे मोटे-मोटे तौर पर समान लिंगीय लोग एक दूसरे के प्रति आकर्षित नहीं हो सकते। प्राकृतिक तौर पर पुरुष, पुरुष के प्रति आकर्षित नहीं हो सकता। महिला, महिला के प्रति आकर्षित नहीं हो सकती। इतना ही नहीं ये आकर्षण कभी कभी देश, काल और परिस्थिति के अनुसार भी तय होता है। जैसे कोई गोरा अमरीकी किसी अश्वेत नाइजीरियन महिला के सपने नहीं देखेगा (अगर देखे तो भी हर्ज नहीं)। यहां तक तो समझ में आता है। पर हमारे समाज में एक और बहुत बड़ी मूढ़ता है, जहां एक जैसे दिखने वाले लोग एक दूसरे के प्रति सिर्फ इसलिए आकर्षित नहीं हो सकते क्योंकि उनकी जातियां अलग हैं। 

है ना एक भद्दा मज़ाक सारी मानवता पर?, है ना एक कुकृत्य ईश्वर की रची प्रकृति के विरुद्ध? पर रुकिए आप तो इक्कीसवीं सदी में हैं! यहां जातिवाद खुलकर शोर नहीं मचाता, ये दबे पांव आता है, पुरखों की दी गई कुछ चुनिंदा कु संस्कृति के साथ, आज तमाम वर्गों के सामाजिक और राजनैतिक लाभ जुड़े हैं। इसलिए अगर ये नेता और ये झोलाछाप बाबा आपको किसी रोज़ किसी दलित के घर भोजन करते नजर आ जाएं तो आश्चर्य ना करिएगा। इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या सोचेंगे क्योंकि वहां इनके राजनैतिक लाभ छुपे हैं। पर इनकी पूरी पूरी कोशिश रहेगी कि ये लोग सारी भड़ास आप पर निकालें। आपके बच्चों को आपकी तुलना में लाकर खड़ा कर दें। मां बाप बनाम प्रेमिका!!!!

तिस पर इनकी बरसों पुरानी निंजा टेकनीक, संस्कारों की दुहाई, बॉलीवुड जिम्मेदार, अंग्रेजी सभ्यता जिम्मेदार, कॉन्वेंट की पढ़ाई जिम्मेदार, आप खुद जिम्मेदार।

इनसे कोई पूछे कि ईश्वर के रचे इंसानों को कोसने का, ईश्वर का इंसानों को दिए सबसे बड़े उपहार "प्रेम" को तुच्छ मानने का हक इन्हें किसने दिया? क्या वे खुद ईश्वर हैं? क्या वे ईश्वर होने का दावा कर सकते हैं? क्या उन्होंने ईश्वर को देखा है? क्या ईश्वर प्रेम करने की इजाज़त नहीं देता? क्या प्रेम करना प्रकृति के विरुद्ध है?

क्या मां बाप को अब जातिगत अभिमान त्याग कर अपने बच्चों की इच्छा में राज़ी नहीं होना चाहिए? क्या मां बाप को उनके बच्चो के परिपक्व हो जाने के बाद उनको सही गलत की सही शिक्षा, जिसमें किसी के प्रति द्वेष ना हो, ऐसी तठस्थ शिक्षा नहीं देनी चाहिए?  इसके उलट जब यही मां- बाप अपने बच्चों से सिर्फ इस लिए मुंह मोड़ लेते हैं क्योंकि उन्होंने अपनी इच्छा से वैवाहिक संबंध कायम किए, इतना ही नहीं उत्तर भारत के कई इलाकों से आए दिन "ऑनर किलिंग" की खबरें आया करती हैं, जहां मां-बाप ने अपने बच्चों को सिर्फ इस लिए मार डाला क्योंकि वे किसी से प्रेम करते थे......ऐसे मां बापों के लिए ये झोलाछाप फैंसी बाबा क्या कहेंगे? क्या सारा दोष बच्चों का है? .......ये कहां तक सही है? क्या इस प्रकार की प्रवृतियों को अब इक्कीसवीं शताब्दी में समाप्त हो जाने की जरूरत नहीं है? ज़रा गहराई से सोचिए,

और यदि आप की आंखे अभी भी ना खुलें तो इस लेख को स्क्रॉल करके ऊपर की ओर जाइए और जहां मैंने "तेजस्वी" शब्द के ना ना प्रकार के विकल्प दिए हैं उनमें से अपनी इच्छानुसार व स्वादानुसार कोई सा भी विकल्प चुन लीजिए।

अस्तु!


लेखक -धर्मेश कुमार रानू

(Dharmesh Kumar Ranu- The Lamppost)

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