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क्या खड़गे लगायेंगे कांग्रेस का बेड़ा पार, या नाव फंसेगी जा मझदार? Can Mallikarjun Kharge make a difference to the Congress

 

Can Mallikarjun Kharge make a difference to the Congress

क्या खड़गे  के सहारे कांग्रेस पकड़ेगी रफ्तार?

कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge)के कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित होने के मायने भारतीय राजनीति में बड़े है मगर उससे भी बड़ी चुनौतिया उनका मुँह बाये इंतजार कर रही है। 

भारत की  वर्तमान राजनीति में बड़ा परिवर्तन लाने हेतु खड़गे के पास स्वर्णिम मौका है अगर वे केवल कठपुतली रूपी अध्यक्ष न हो तो, क्योकि उन्हे कांग्रेस (Congress) के खिसके जनाधार के साथ-साथ विकराल रूप धारण करती सत्तारूढ़ पार्टी को भी हर दांव पर पटखनी देनी है। “जैसा को तैसा” के तर्ज पर अगर खड़गे साहब (Mallikarjun Kharge) अपनी कार्यशैली अपनाते है तो निश्चित तौर पर कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में कुछ बड़ा कर सकती है मगर यह “बड़ा ”इतना भी आसान नही है उनको जमीनी स्तर पर कुछ ऐसे पहल करने होंगे जिससे युवा अधिक से अधिक कांग्रेस पार्टी की विचारधारा से जुड़ सके ।कांग्रेस पार्टी को खड़ा करने के साथ-साथ खड़गे को आम जनमानस के मुद्दे हेतु कांग्रेस को जमीनी स्तर पर सत्ता से लड़ते हुए उत्तर-प्रदेश और बिहार में कुछ नये प्रयोग करने होंगे ।

राहुल गाँधी (Rahul Gandhi) की भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) की एवं खड़गे के रणनीति की असली परीक्षा गुजरात विधानसभा  चुनाव (Gujarat Assembly Elections)  में है ।हालाकि राजनीतिक विश्लेषको का मानना है कि खड़गे की अब तक की जो राजनीतिक यात्रा रही है उसको देखते हुए यह साफ-साफ पता चलता है कि फिलहाल तो कांग्रेस की कार्यशैली में कोई बड़ा बदलाव नही आने वाला है।

खड़गे की राजनीतिक सूझ-बूझ और राजनीतिक संबंध का एक बड़ा फायदा अन्य विपक्षी राजनीतिक दलो को साधने में हो सकती है क्योकि उनके आज तक के राजनीतिक कैरियर में कोई दाग नही है और ना ही वे उग्र राजनीतिज्ञ है जबकि अगर शशि थरूर (Shashi Tharoor) इस पद पर पहुँचे होते तो कांग्रेस की कार्यशैली में वृहद बदलाव नजर आता।

वर्तमान में मोदी (Narendra Modi) की अगुआई वाली बी. जे. पी. सरकार (BJP) रुपये की गिरती साख और बेरोजगारी तथा महंगाई पर चौतरफा आलोचना से घिर चुकी है इसके बावजूद अगर खड़गे साहब आम जनमानस को अपने नेतृत्व की बदौलत कांग्रेस के साथ न जोड़ सके तो वे सिर्फ और सिर्फ मुखौटा ही साबित होंगे । वर्तमान में बी. जे. पी. के महंगाई से त्रस्त जनता टक टकी लगाकर उस राजनीति पार्टी की तरफ देख रही है जो अपने संघर्ष की बदौलत सत्ता के सिंहासन को यह बता सके कि साहब जनता त्रस्त है,

बाजारों में सन्नाटा है

व्यापार में घाटा है

32 रुपये आटा है

और जनता महंगाई 

का सह रही चाटा है।



लेखक : अजय पटेल वाग्मी -गोरखपुर

-The LampPost

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