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जिस पप्पू को फेल करने के लिए करोड़ों रूपये बहाए, वो आजकल लोगों का दिल जीत रहा है

 

Rahul Gandhi Funny Moments- Bharat Jodo Yatra

लाल सिंह चड्ढा उर्फ़ "पप्पू"

बीते दिनों लाल सिंह चड्ढा फिल्म आई ! बेवजह फिल्म का बहिष्कार किया गया ! बहिष्कार किसने किया यह सर्वविदित है !

भारत में अमित शाह (Amit Shah) के बेटे जय शाह (Jay Shah) कैसे भी हो, वे 50 हजार की कम्पनी को 50 करोड़ की बना देंगे ! उनके भोले या पप्पू होने पर कोई बात नहीं हो सकती ! उनके टैक्स हेवन स्टेट में निवेश होने और कम्पनीज होने पर कोई चर्चा नहीं होती ! उनके साथ वंशवाद का मुद्दा भी नहीं होता ! पिता के आशीर्वाद से फैलने-फूलने की चर्चा भी नहीं होती ! क्योंकि वह सत्ता का भाग है ! भारतीय क्रिकेट संघ (BCCI) में उन्हें रिपीट किया गया और एशिया क्रिकेट की संस्था पर भी वे काबिज है !
भारतीय परिदृश्य में मिस्टर परफेक्शनिस्ट के नाम से ख्यात फिल्म कलाकार सत्ता के विरोध का पात्र है ! उसका सत्ता से कोई झगड़ा नहीं है ! लेकिन सत्ता को उससे झगड़ने में फायदा है ! वह एक फिल्म बनाता है, उसमे वह जिस पात्र की भूमिका निभाता है वह भोला होता है लेकिन मन का साफ़ और बिल्कुल निश्छल है ! उसके दोस्त, उसके परिचित उसके निश्छल होने को उसकी कमजोरी आंकते हैं और उस पर हँसते हैं ! लेकिन वह अपनी इस कमजोरी को लेकर सहज है और जीवन में यही निश्छलता उसे बड़ा आदमी बना देती है !
मुझे यह फिल्म थोड़ी अस्वाभाविक लगी! क्योंकि आज की कुटिल सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक परिस्थितियों में निश्छल होना गुण नहीं अवगुण समझा जाता है ! निश्छल व्यक्ति का कोई दुश्मन नहीं हो सकता ! वह दुश्मनो को माफ़ करता जाता है, वह दुश्मन घायल कमांडर को बचाने के लिए युद्ध के बीच चला जाता है ! अस्वाभाविक है यह सब ! लेकिन प्रिय है! अच्छा लगता है देखना! हिंसा के बीच कोई अहिंसा का ध्वज लेकर खड़ा होगा वह महात्मा हो जायेगा यह हमने कालांतर में देखा है ! आज के संदर्भ में जब हम हर तरफ बड़े कुटिल लोग देखते हैं, धर्म में पाखंड और कुटिलता, समाज में पाखंड और कुटिलता , राजनीति तो पूरी तरह कुटिल तंत्र हो ही गयी है ऐसे में लगता है कि लाल सिंह चड्डा (Laal Singh Chaddha) सिर्फ फिल्म में ही हो सकता है!
फिल्म क्योंकि काव्यात्मक शैली में थी तो बहुत सारे लोगों को समझ भी नहीं आई! हम लोगों को सरकाय लेयो खटिया ज्यादा अच्छे से समझ आता है ! या फिर मन की बात की अपच को हम पूरा का पूरा पचा सकते हैं, हम सबका इतिहास बोध बेहद गरीब है इसलिए कोई अनपढ़ वक्ता हमे इतिहास के बारे में लच्छेदार झूठ परोसता है और हम उस पर लहालहोट होने लगते है ! भारतीय भारतीय राजनीति का काव्य भी तो हमे समझ कब आता है !
Laal Singh Chaddha- Film Scene-OTT Platform
लाल सिंह चड्ढा फिल्म का एक दृश्य, और चेहरे पर निश्चलता लिए किरदार 
उसी भारतीय राजनीति में एक नाम है राहुल गाँधी (Rahul Gandhi), जिसे पप्पू साबित करने में करोड़ो रूपये निवेश किये गए ! वे लाल सिंह चड्ढा नहीं है ! लाल सिंह चड्ढा (Laal Singh Chaddha) नहीं है माने वे उतने भोले नहीं हैं लेकिन निश्छल वैसे ही हैं ! वे लाल सिंह चड्डा (Laal Singh Chaddha) की ही तरह किसी को दुश्मन नहीं मानते ! पिता के हत्यारे तक को माफ़ कर देते हैं और धुर विरोधी जहरीले राजनीतिज्ञ से गले मिलते हैं ! राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की आज की पहचान उनका निश्छल और मानवीय होना है ! एक कुटिल और तिकड़मी गैंग के सामने निश्छलता को संजोये रखना बड़ी उपलब्धि है ! और यह निश्छलता कृत्रिम नहीं लगती ! लाल सिंह चड्ढा में भी वह निश्छलता इनबिल्ट है !
पहले-पहल जब राहुल गाँधी (Rahul Gandhi) ने भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) शुरू की, तो राहुल के जूतों पर बहुत बातें हुई ! लाल सिंह चड्ढा फिल्म भी यहीं से शुरू होती है ! ट्रेन में वह गंदे जूते पहने बैठा होता है! वह बड़ा आदमी होता है लेकिन ट्रेन में बिलकुल आम आदमी की तरह , भोली बाते करता है और धीरे धीरे सबकी रूचि का व्यक्ति बन जाता है ! लाल सिंह पूरे भारत में उन्हीं जूतों से दौड़ लगाता है ! लाल सिंह चड्ढा कहता है कि उसे जब कुछ समझ नहीं आता तो वह दौड़ना शुरू कर देता है !
Rahul Gandhi- Bharat Jodo Yatra
भारत जोड़ो यात्रा का एक दृश्य और भारी जनसैलाब 
राहुल गांधी को भी आज की गन्दी और कुटिल राजनीति समझ नहीं आ रही थी ! क्या कुटिल राजनीति का कोई प्रतिस्थापक मॉडल हो सकता है? क्या जगह-जगह से खंडित कर दिए गए देश में जोड़ने की कोई पहल हो सकती है? क्या राजनीति में चुनाव जीतना ही एक मात्र लक्ष्य होता है? क्या वर्तमान राजनीति और राजनीतिज्ञों को नफरत से प्रेम की ओर मोड़ा जा सकता है? क्या देश एक धर्म एक भाषा का मुद्दा है, क्या संविधान की परिकल्पना के अनुसार देश का निर्माण हो सकता है? सत्ता प्राप्ति न सही क्या सत्ता में बैठे लोगो को पकड़ कर हिलाया जा सकता है कि आपका नफरती मॉडल देश तोड़ रहा है और लोग यह समझ भी रहे हैं कि नफरत से देश का विकास नहीं हो सकता, नफरत से देश का विकास नहीं हो रहा बल्कि समाज में नफरत बढ़ रही है और राजनीती दिन ब दिन और कुटिल हो रही है ! क्या कोई ऐसे समाज ऐसी राजनीति में सांस भी ले सकता है ?
लाल सिंह चड्डा जब दौड़ता है वह अकेला दौड़ता है, और धीरे-धीरे पूरा देश उसके साथ दौड़ने लगता है ! लाल सिंह चड्डा की दौड़ते-दौड़ते दाढ़ी बढ़ जाती है लेकिन वह रुकता नहीं! लाल सिंह चड्ढा का दौड़ना उसके लिए एक अर्थ रखता है कि वह अपनी ऊर्जा को विध्वंस में नहीं लगाना चाहता, वह अपनी ऊर्जा को इस तरह व्यवस्थित करता है कि दौड़ता है ! सत्ता भोले आदमियों की ऊर्जा का विध्वंस में दुरुपयोग करती है ! लाल सिंह किसी सत्ता के दुरुपयोग का टूल नहीं हो सकता ! इसी प्रकार राहुल गाँधी भोले लोगो की ऊर्जा का प्रयोग प्रेम, निश्छलता और देश जोड़ने में कर रहे हैं ! वह कई लाल सिंह चड्डा कई पप्पुओं का (भोले, आम और साधारण) प्रतिनिधि पात्र है जो अपनत्व की, प्रेम की भाषा समझते हैं ! कितने ही लोग राहुल गाँधी से गले मिलते हैं और रो पड़ते हैं, इस घटना को नोट किया जाए कि जिस दिन राहुल गाँधी (Rahul Gandhi) की जीवनी लिखी जायेगी ये फोटो वहां कहे गए शब्दों के सजीव प्रमाण होंगे कि नफरत के युग में लोग प्रेम के लिए लिए किस तरह तड़प रहे थे, उन्हें लगता था कि राजनीतिज्ञों में प्रेम नाम की चीज बीते युग की बात हो गयी है !
राहुल गाँधी को पप्पू से आगे आप लाल सिंह चड्ढा भी कह सकते हैं ! राहुल का मकसद बेशक सत्ता भी हो सकता है लेकिन देश को जोड़ने वाली सत्ता किसे नहीं चाहिए ! और सत्ता के बिना देश चलेगा भी कैसे ! एक बड़े समाजवादी लेखक ने लिखा कि प्रगतिशील लेखक लोग राहुल गाँधी की यात्रा के प्रेमिल फोटो पर लहालहोट हुए जाते हैं, उन्हें भी लगता है राजशाही घराने के सुपूत ही देश बचाएंगे ! यकीनन उस लेखक का सवाल वाजिब है लेकिन कोई और न उठे, कम्युनिस्ट पार्टीज (CPIM) भी सोई रहें तो कोई तो चले ! वैसे राहुल गाँधी की यह यात्रा सिविल सोसाइटी, जन संगठनों और NAPM के सहयोंग से है और यह अकेली कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा नहीं है !

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