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विदेशी अखबार ने उड़ाया भारत का मज़ाक, फिर मुह की खानी पड़ी

 G For Gentleman???


गाली को प्रणाम समझना पड़ता है,

मधुशाला को धाम समझना पड़ता है,

आधुनिक बनने की चाह में..        

रावण को भी राम समझना पड़ता है ।।

- अज़हर इक़बाल

 गांधी जी (Mahatma Gandhi)भी आधुनिकता की अंधी दौड़ को पसंद नहीं करते थे, वे अक्सर कहा करते थे,"अंग्रेजों से अधिक हानिकारक अंग्रेजियत है"। 

पर आधुनिकता की ये अंधी दौड़ यूं ही शुरू नहीं हो गई ,कुछ हम पर थोपा गया और कुछ योजनाबद्ध तरीके से हमको सिखाया गया । मुझे याद है पहली बार अंग्रेजी पुस्तक से मेरा सामना कक्षा 6वीं में हुआ था जब मैं अंग्रेजी वर्णमाला पढ़ रहा था, जिसमें अक्षर G पर लिखा हुआ था G for Gentleman । 

और सामने एक सूटेट बुटेट कोटेड पेंटेड आदमी की तस्वीर बनी हुई थी । यानी कि हमारे बाल मन ने मान लिया कि कोट पेंट वाला आदमी जैंटलमैन होता है । अब जेंटलमैन की इस परिभाषा में धोती कुर्ता वाला व्यक्ति फीट कहाँ बैठेगा!। और यहीं से शुरू हो गई आधुनिक बनने की अंधी दौड़ , जिससे कि 35℃ - 40℃ तापमान में भी हम अपने ऑफिस में टाई और कोट बड़े गर्व से पहन लेते हैं। घर मे कुत्ता पालना और उसकी पॉटी साफ करना स्टेटस सिंबल है पर गाय की गोबर की गंध सहन नही होती। It stinks, you know!

पर जिस पश्चिम का हम अंधानुकरण करते हैं, वो तो हमारा मज़ाक उड़ाता है। इसी  बात को ले लीजिए, जब हमारा अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम प्रारंभ हुआ तो पश्चिमी मीडिया (The New York Times) में भारत का मजाक बनाते हुए एक कार्टून छपा था, जो बहुत चर्चित हुआ था, हालांकि इस कार्टून पर अमरीकी अखबार की विश्व भर में हुई किरकिरी के मद्देनज़र उसे माफ़ी मांगनी पड़ी थी (देखें तस्वीर) 

साल 2014 में अमरीकी अखबार में छपा था यह कार्टून 

पर हमने अपनी मेहनत से बहुत प्रगति की और आज तक हम उन्ही पश्चिमी देशों के 342 उपग्रह अंतरिक्ष में भेज चुके हैं अपने स्वदेशी प्रक्षेपण यान से । और यह सब संभव हुआ उसी धोती कुर्ता छाप किसान के उगाए अन्न की ताकत व गाय के दूध के पोषण से।

आधुनिकता की ये अंधी दौड़ मुझे भी पता नही कहाँ ले जाती? पर हमारी हिंदी ने हमे बताया कि जेंटलमैन का अर्थ सत्पुरुष होता है। सत्पुरुष अर्थात वह व्यक्ति जिसके कर्म उजले हों ,वस्त्र भले ही उजले ना हों। और ऐसे में खुद कीचड़ में अपने वस्त्र गंदे कर सबके लिए पौष्टिक अन्न उगाने वाले किसान से बढ़कर सत्पुरुष भला कौन होगा? शायद इसीलिए हमारे द्वितीय प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने नारा दिया था, जय जवान जय किसान।

और मुझे गर्व है कि मैं एक किसान हूँ। आज जब खेतों में रोपाई का कार्य प्रारंभ हुआ तो मैंने भी रोपा लगाकर मातृभूमि के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित किये। और धरती माँ से आशीर्वाद माँगा के हमारे खेत सदैव फसलों से लहलहाते रहें और सुबह जब सूरज उस पर अपनी रोशनी डाले तो लाखों मोती चमक उठे। हमारी नदियाँ मीठे जल व मछलियों से भरी रहें और उसकी लहरों पर बच्चे जब अठखेलियाँ खेलें तो मन प्रफुल्लित हो जाए। हमारे तालाब व कुएँ हमारी माँओं के घड़े सदैव मीठे जल से भरती रहें और जब कोई उस जल से अपनी प्यास बुझाए तो उसका मन तृप्त हो जाए।  हमारे गाँवों में ठंडी पूर्वाई चलती रहे और सुबह सुबह पकी फसल की सोंधी खुशबू से पूरा चमन महक उठे।

इन्हीं कामनाओं के साथ विदा लेता हूँ।

जय छत्तीसगढ़!!


लेखक: वैभव

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