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JNU ब्राह्मण - बनिया कांड-क्या JNU के लाल सलाम वाले संघियों से अब बस दीवारें ही लाल हो सकती हैं ?

Anti-Brahmin slogans in JNU

 जेनयू का वामत्व अब हिंदुत्व जैसा:

हाल फिलहाल में सोशल मीडिया पर कुछ फोटोज वायरल हो रही हैं। ये फोटोज़ JNU (Jawaharlal Nehru University) के किसी हॉस्टल आदि की हैं जहाँ दीवारों पर "ब्राह्मण भारत छोड़ो" (Anti Brahmin slogans in JNU) तथा "ब्राह्मण - बनिया भारत छोड़ो" जैसे वाक्य लिखे नज़र आ रहे हैं। (Graffiti against Brahmins and Banias) अब ये किसने लिखा और क्यों लिखा ये तो जांच का विषय है। पर ज़ाहिर सी बात है जब जहवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का नाम आएगा तो वामपंथ का भी ज़िक्र किया जाएगा, फिर वहां सक्रीय वामपंथी विद्यार्थी संगठनों का भी ज़िक्र होगा। और सारा का सारा दोष भी उन्हीं पर मढ़ा जायेगा। हमारा ये बिलकुल भी मनना नहीं है कि ये नारे किसी वामपंथी संगठन से जुड़े विद्यार्थी ने नहीं लिखे हैं, हो सकता है उन्होंने लिखा हो या किसी और ने?

क्या फर्क पड़ता है, पर... आइये कुछ अहम् सवालों पर नज़र डालते हैं जो इस घटना के सन्दर्भ में उठाये जाने बहुत आवश्यक हैं:


सवाल नंबर 1:

क्या इन नारों/वाक्यों को वामपंथियों ने ही लिखा? या JNU को फिर विवादों में लाकर किन्हीं प्रमुख मुद्दों को मुख्यधारा से गायब करने की साजिश है?


सवाल नम्बर 2:

अगर ये किसी साजिश का हिस्सा है तो वामपंथियों को खुलकर बोलना चाहिए, अगर वे ऐसा नहीं कर रहे तो क्या वे अपने खिलाफ इस आरोप से खुश हैं?


सवाल नंबर 3: 

अगर वे (वामपंथी) इस  घटना में शामिल हैं और फिर भी ब्राह्मण, बनिया विरोधी नारों से दीवारों को पोता जाना उचित मानते हैं तब भी उन्हें मुँह छिपाने की बजाय इस घटना पर स्पष्टीकरण देना चाहिए, और इस विवादास्पद मुद्दे की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए- क्या वे कायर हैं?


इन सवालों के मद्देनज़र इस घटना को देखिये, ख़ासकर सवाल नम्बर 2  और नंबर 3 पर गौर कीजिये, और बताईये इस कथित वामपंथ के थोथेपन पर हंसी आती है न? अभी तक जिन्हें ब्राह्मणवाद (Brahmanism) से इन्हें तकलीफ थी अब उन्हें ब्राह्मण से तकलीफ होने लगी, और सिर्फ ब्राह्मण ही नहीं अब इसके साथ ब्याज दर पर बनिया भी उपलब्ध है। अब उनकी सीधी लड़ाई जातिवाद से ना होकर जाति विशेष से हो चुकी है और ये नारे या उद्घोष इस बात की सीधी और स्पष्ट घोषणा है, ऐसा हम कहें ना कहें पर कम से कम मीडिया तो इसे इस रूप में ही दिखायेगा, दिनरात न्यूज़ चैनलों पर JNU -JNU ही चलेगा, ये जेनुआई (JNUian) वामपंथी जो पहले से ही देशद्रोही (Anti National) और अर्बन नक्सल (Urban Naxal) घोषित हो ही चुके हैं, अब जाति द्रोही भी घोषित हो जायेंगे, और वास्तव में आप स्वघोषित जाति-मुक्त, धर्म-मुक्त और तथाकथित साइंटिफिक टेम्परामेंट युक्त लोग, जब खुद किसी को जाति सूचक शब्द का प्रयोग करके ललकार रहे हों तब ऐसे में आपने अपनी मूल विचारधारा जो कथित "तार्किक विचारधारा" है, उसके सभी पहिये खोल डाले हैं। 

वामपंथियों को अपने संगठन पर नज़र डालनी चाहिए, आपके राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों में भी उन्हीं लोगों की बहुतायत मिलेगी जो इन विशेष जातियों से सम्बन्ध रखते हैं। हाँ भले ही वे वामपंथी होने के कारण अपने को जातिगत बंधनों से मुक्त महसूस करते हों। ऐसे में दूसरा सवाल ये कि क्या आज का दबा कुचला वर्ग, पिछड़ा, अति पिछड़ा, दलित और आदिवासी आपके साथ खड़ा नज़र आता है? क्या आपके मार्क्स (Marx), लेनिन (Lenin), माओ (Mao), चे-गुवेरा (Che Guevara) से उनका कोई सरोकार है? क्या उनके मुद्दों को उठाने और उनके साथ कदमताल करने ये सभी लोग अपनी कब्रों से निकलकर आएंगे?

भारत जैसे देश में आपकी प्रासंगिकता तो कभी थी ही नहीं, आप जब तक इन वर्गों की बात ज़मीन पर उतरकर करते रहे थे, और जनता के पास जब अन्य कोई विकल्प नहीं था तब वो आपके साथ खड़ी थी, अब तो आप मैदान से बाहर हैं आपकी विचारधारा की बुनियाद भी इस देश की सामूहिक विचारधारा के उन मूल्यों की खिलाफत करती है जिसका आधार आस्था और मान्यता पर टिका है।इस देश के लोग पहले "मानते हैं" फिर "जानते हैं", इसीलिए जो मान्यताएं उन्हें जातिगत तौर पर मिली हैं, वे उनसे इतनी आसानी से मुक्त नहीं हो पाते, ज़रा आप भी खुद पर नज़र डालें - क्या आप लोग भी लोग भी माँ की कोख से कॉमरेड ही पैदा हुए थे? क्या आपने पैदा होते ही रुदन की जगह "लाल सलाम" का उद्घोष  किया था? आप वक्त के साथ बदले, जिज्ञासु बने अपने बुनियादी सवालों के जवाबों को आपने जिन पुस्तकों में खोजना शुरू किया, और जहाँ से उन सवालों के जवाब पाए आप वैसे ही होते गए, आप बदले पर ये ना भूलिए कि आपके आसपास का समाज वही है जो आपके रूपांतरण से पहले था, उसमें निश्चय ही जातिवाद है, धर्मवाद है, भेदभाव है, पाखण्ड है, और ये सब सदियों से चला आ रहा है और आज इसके विरुद्ध क्रांति करने को भी कोई उत्सुक नहीं है, ऐसे में आपके अंदर मची उथल-पुथल और आवेग आपसे वो सब करवाता है जो आपको नहीं करना चाहिए। आपको सबसे पहले तो अपनी विश्वसनीयता स्थापित करनी है, क्योंकि आपके या आपकी विचारधारा के होने ना होने से भारत के किसी भी सर्वसाधारण मनुष्य को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इसलिए अगर आप उनके हमदर्द नहीं बन सकते तो उन्हें दर्द देकर भी आप उन्हें अपने साथ नहीं जोड़ पाएंगे। 

यदि आपको ब्राह्मण, बनिया, राजपूत आदि से दिक्कत है तो इसमें उस सुदूर गाँव में बैठा JNU जाने के सपने देखने वाला कोई गरीब ब्राह्मण, बनिया , राजपूत, भूमिहार बच्चे का क्या दोष? जो अब सिर्फ इसलिए JNU नहीं जा पायेगा क्योंकि उसके अभिवावकों ने आपके हॉस्टल्स आदि में ब्राह्मण, बनिया आदि के खिलाफ लिखे नारों की चर्चा मीडिया और समाज में सुनी है। पहले जब उन अभिवावकों ने आपकी देशविरोधी छवि को मीडिया में उभरते देखा था तब उन्हें उतनी दिक्कत ना हुई थी, क्योंकि हमारे यहाँ लोगों देश की उतनी चिंता नहीं है जितनी कि जाति की, क्योंकि हो ना हो पर...... "जाति नहीं जाती", ना यकीन आता हो तो अपने उन कॉमरेड्स को देखिये जो JNU आने के पहले ब्राह्मण या राजपूत थे, क्या आपको उनमें कोई भी सौम्यता, मृदुभषिता नज़र आती है? वे तो पहले से भी ज़्यादा अहंकारी और मुंहफट हो चुके हैं। और ऐसे ही लोगों से तो आपका संघठन भरा पड़ा है, बल्कि हमने तो सुना है कि आपके ज़्यादातर शीर्षस्त कॉमरेड्स तो एक्स-ब्राह्मण ही हैं, थोड़ा इस ओर भी प्रकाश डालिये और देखिए, कही इस बात का अनुवांशिक प्रवित्ति (जेनेटिक टेंडेंसी) से तो कुछ लेना देना नहीं है न?

अगर ऐसा है, तो आप जिस बात के लिए संघ पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं, वो तो बिलकुल बेबुनियाद साबित होती है, आपके भी "वाम -सरसंघचालक" ब्राह्मण और ज़मींदार ही रहे हैं। बस अंतर सिर्फ इतना है कि वे राज तो करना चाहते हैं पर जाति-धर्म आदि को छोड़कर, और संघ के लोग राज कर रहे हैं लोगों को जाति - धर्मों में तोड़कर, छोड़ना और तोड़ना एक ही जैसी क्रिया के पर्याय हैं आपने जिसे छोड़ा है वे उन्हें ही तोड़ रहे हैं और चूँकि आपने उन्हें जोड़ना नहीं सीखा है इसलिए वे तोड़कर राज करते रहेंगे, और आप छोड़कर भी दरकिनार कर दिए जाओगे, पर ये जान लो! आप में भी कही ना कही अभी तक वही अहंकार रूपी वही ब्राह्मणवाद बसा हुआ है, जिसका आप आजीवन विरोध करते आये हैं, क्योंकि दुश्मन से लड़ते लड़ते कई योद्धा आश्चर्यजनक रूप से अपने दुश्मन जैसा ही वर्तन करने लगते हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे हिटलर से लड़ते लड़ते ब्रितानी हुकूमत हिटलर ही बन चुकी थी, ठीक वैसे ही आप कुंठित लोग हिंदुत्व से लड़ते-लड़ते हिंदुत्व ही हो चुके हो, आप एक नए प्रकार के "वामपंथी ब्राह्मणवाद" और "वामपंथी-हिंदुत्व" को जन्म दे रहे हैं जो हूबहू हिंदुत्व जैसा ही है। आप अपनी सुविधा के लिए अगर चाहें तो इसे "वामत्व" भी कह सकते हैं।


लेख: धर्मेश कुमार रानू 

(Dharmesh Kumar Ranu-The LampPost)

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