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दुनिया में था वो सबसे अमीर पर नहीं खरीद सका एक पत्रकार का ज़मीर - The Brave Heart Ravish Kumar

 

Ravish Kumar resigns from NDTV

- मोदी की पूरी हुई मुराद, रवीश इस्तीफे के साथ!

-अडानी के कब्जे के बाद टीवी जगत से पत्रकारिता का सफाया

-दुनिया का दूसरा सबसे अमीर इंसान भी रवीश को ना खरीद पाया


नमस्कार मैं रवीश कुमार! (Namskar Main Ravish Kumar)

ये शब्द केवल अभिवादन नहीं हैं ये भरोसा है भारत की दबी कुचली उन सभी आवाजों का जिनका अंततः कोई नहीं रह जाता है, और जिसके लिए  लिए बाद में रवीश (Ravish Kumar) ही नज़र आता है

Why Ravish Kumar resigns from NDTV?
रवीश के प्राइम टाइम शो का एक चित्रण 

दोस्तों जैसा कि आप सब जानते हैं कि बीते दिनों भारत के सबसे चर्चित पत्रकार, और वास्तव में पत्रकारिता करने वाले पत्रकार "रवीश कुमार"जी (Ravish Kumar) ने NDTV से इस्तीफा दे दिया है।(Ravish Kumar's Resignation) और इस्तीफे की इतनी चर्चा हो रही है जितनी किसी भी पत्रकार के बारे में आमतौर पर नहीं होती है। खैर! जब कोई पत्रकार बचा हो तब तो उसकी चर्चा हो....पर टीवी जगत की पत्रकारिता का औपचारिक अंतिम संस्कार हो चुका है। और इस तरह मोदी (Narendra Modi) के धनपति मित्र के द्वारा अपनी सरकार की नीतियों पर प्रश्न उठाने वाला एक बड़ा मीडिया दुर्ग फतह कर लिया गया है। 

How Adani Group acquired NDTV- Gautam Adani aquired NDTV
अडानी के कब्जे में भारत का एकमात्र मुक्त टीवी मीडिया संस्थान 

वो कैसे किया गया और किस तरह से ये हो सका उस पर किसी और दिन चर्चा करेंगे (Adani Group's takeover of NDTV) पर आइए थोड़ा जान लें बिहार(Bihar) के मोतिहारी (Motihari) के उस बेहद आम लड़के के बारे में जिसकी जुबां से आज भी भोजपुरी मिट्टी की खुशबू आती है और जिसका दिल हमेशा देश के आम लोगों के लिए धड़कता है। जिसने लगातार जनता के हक की आवाज़ों को उठाया गया। जिसने किसान, नौजवान, मध्यम वर्ग, मजदूर और महिला आदि के लिए ना जाने कितने शोज़ किए पर अफसोस कि अब ऐसे शोज़ भारत के किसी टीवी मीडिया संस्थान में कई दशकों तक नहीं दिखाई देंगे।

Ravish Kumar resigns from NDTV
क्या जनता की हक़ की आवाज़ टीवी जगत से हो जायेगी नदारद? 

दोस्तों ज्ञात जानकारियों के मुताबिक रवीश जी का करियर टीवी पत्रकारिता के साथ सन 1996 से शुरू हुआ NDTV के साथ, चूंकि रवीश बिहार से बमुश्किल दिल्ली पहुंचे, बड़ी मेहनत से पढ़ाई लिखाई की, दिल्ली विश्वविद्यालय से (Delhi University) पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन करके उन्हें NDTV में काम मिल गया, काम तो था लेटर्स को छांटने का, जिसके तहत वो दर्शकों के सुझाव, मुद्दों, और समस्याओं को पढ़कर उनमें से वे पत्र शॉर्टलिस्ट करते थे जो उपयोगी होते थे, पर इस दौरान ही शायद उन्हें जनता के मुद्दों की अहमियत पता चली, लोग बड़े दिल से पत्र लिखते थे। और रवीश एक एक पत्र पढ़ना चाहते थे, जनता और रवीश के इस रिश्ते को आगे चलकर एक बहुत व्यापक रूप लेना था। पर कहते हैं ना, कि हर चीज़ का अपना एक वक्त होता है.....रवीश उस वक्त नए नए थे, युवा थे काफ़ी कुछ सीख समझ रहे थे....और यही दौर था जब टीवी पत्रकारिता भारत में अपने पांव जमा रही थी। एनडीटीवी में उस वक्त काफी वरिष्ठ और नामी चेहरे काम किया करते थे उनमें से एक थे राजदीप सरदेसाई (Rajdeep Sardesai) जो आजकल इंडिया टुडे ग्रुप (India Today Group) का हिस्सा हैं। उस वक्त रवीश और उनके बाकी साथी राजदीप से काफी डरते थे, क्योंकि राजदीप अक्सर इन लोगों को डांट डपट दिया करते थे। खैर बाद में राजदीप और अन्य पत्रकारों ने रवीश जैसे जोहरी को पहचाना और उन्हें आगे बढ़ाने में मदद भी की, फिर NDTV के मालिकों का भी रवीश को फ्री हैंड मिला, और वो जैसा चाहते वैसा अपने शो को डिजाइन करते, खुलकर बोलते....

रवीश ने ग्राउंड रिपोर्टर के तौर पर देश के ऐसे ऐसे सुदूर इलाकों में जाकर रिपोर्टिंग की जहां कोई रिपोर्टर जाने तक को  तैयार नहीं होता था। 

Ravish Kumar resigns from NDTV
एक ग्राउंड रिपोर्टर के तौर पर रवीश ने बहुत बेहतरीन काम किया 

इसके बाद रवीश उन्हें बस 10-15 मिनट का एक मॉर्निंग शो होस्ट करने को मिला, जिसका नाम था गुड मॉर्निंग, 2002 में उन्हें एक आधे घंटे का शो "रवीश की रिपोर्ट" (Ravish Ki Report) करने का मौका मिला और इसके बाद उन्हें एक राष्ट्रीय पहचान मिली, बाद में साल 2011 के बाद से प्राइम टाइम (Prime Time with Ravish Kumar) के शो का जो सिलसिला चला वो अब तक जारी रहा। और इसी शो ने मोदी सरकार की नींदें सबसे ज्यादा हराम कर दी। और उसके बाद जैसे रवीश और NDTV एक दूसरे के पर्याय ही बन गए, और अंततः मित्र गौतम (Gautam Adani) ने अपने सखा की हराम हुई नींद को वापस लाने का बीड़ा उठाया और पिछले रास्ते से आकर, चोरी छिप्पे ये NDTV पर आक्रमण कर लिया, यानि कि इसे अकवायर कर लिया।

मनमोहन (Manmohan Singh)की सरकार हो या मोदी (Narendra Modi) की रवीश ने खुलकर दोनों की नीतियों पर प्रश्न चिन्ह खड़े किए। चूंकि मनमोहन की सरकार यानि कांग्रेस सरकार (Congress Government) के दौरान मीडिया इतना दबाव में नहीं होता था इसीलिए हर न्यूज चैनल सरकार के खिलाफ बोल सकता था। तो उस दौर में रवीश का काम नोटिस तो हुआ पर इतने बड़े पैमाने पर नहीं। 

2014 के मोदी काल के बाद से जब हर एक मीडिया मोदीमय हो गया तब रवीश अपना काम वैसे ही करते रहे जैसे वे पहले करते आए थे। और इसमें उन्हें सबसे बड़ा सहयोग मिला चैनलों के मालिकों का यानि कि प्रणय रॉय (Prannoy Roy) और राधिका रॉय (Radhika Roy) जैसे लोगों का जो सरकार के दबाव में झुके नहीं और इसी बात का खामियाजा इन्हें भुगतना पड़ा, इनके यहां इनकम टैक्स की रेड हुई, चैनल को एक दिन के लिए बंद तक करना पड़ा। भाजपा के नेताओं ने चैनल का बहिष्कार तक किया।

 इसके बावजूद NDTV  और उसके चिरपरिचित चेहरे रवीश कुमार डटकर खड़े रहे, रवीश को जान से मारने की धमकियां मिली, उनके खिलाफ ना जाने कितने दुष्प्रचार किए गए, पर ये इंसान ना जाने किस मिट्टी का था। ये लगातार वो ही करता रहा जो इसका काम था, यानि कि सरकार से सवाल पूछना और यही काम तो एक संस्थान मीडिया का होता है, क्योंकि सरकार की तारीफों में तो ना जाने कितने विज्ञापनों से न्यूज पेपर, बैनर होर्डिंग्स, चौक चौराहों पर पाट दिए जाते हैं। पर सरकार को आईना तो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ यानि कि एक मीडिया ही दिखाता है। पर अफसोस अब उस स्तंभ का औपचारिक आखिरी सिरा भी धराशाई हो गया है। पर ये दौर डिजिटल क्रांति का है, अब बमुश्किल ही युवा पीढ़ी टीवी चलाकर, न्यूज या  डिबेट्स देखती हो क्योंकि अब सबकुछ सोशल मीडिया ही है जिसका इस्तेमाल जहां एक ओर एक विशेष राजनैतिक पार्टी नफ़रत और फेक न्यूज़ फैलाने के लिए करती है तो दूसरी ओर एक बड़ी कतार है रवीश जैसों को सुनने और पसंद करने वालों की, बल्की यूं कहें कि सोशल मीडिया ही रवीश की पॉपुलैरिटी का सबसे बड़ा स्रोत है। 

इसलिए रवीश कुमार ने NDTV को इस्तीफा दिया है, पत्रकारिता को नहीं, और खास बात ये कि दुनिया के दूसरे सबसे बड़े अमीर आदमी को रवीश जैसे मामूली पत्रकार के कारण घाटे में चल रहे चैनल, को कई सौ करोड़ खर्च करके खरीदना पड़ा, पर दोस्तों चैनल बिका तो बिका सुकून की बात तो ये है कि "रवीश कुमार" नहीं बिका, वो खुद अगर इस्तीफा ना देते तो बड़ी शर्म की बात होती, उसूलों से समझौता करके अगर अडानी सेठ और मोदी का गुण गान करना आसान भी था, और आर्थिक रूप से भी फायदेमंद था, पर "रवीश" तो "रवीश" हैं..... 

खैर! जो बातें वो उस टीवी मंच पर खुलकर नहीं कह पाते थे कम से कम अब वे अपने स्वतंत्र मंचो पर और खुलकर तथा स्पष्ट बोल पाएंगे। और सामने सुनने वाले लाखों- करोड़ों दर्शकों की भीड़ उनका खुली बाहों से इंतजार कर रही होगी। तो हो जाइए आप भी तैयार, क्योंकि जल्द ही फिर से आ रहा है....

नमस्कार मैं रवीश कुमार!!!


लेखक: धर्मेश कुमार रानू 

(Dharmesh Kumar Ranu- The Lamppost)


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