क्या आम आदमी पार्टी गुजरात चुनाव जीत रही है?
(Is the Aam Aadmi Party winning the Gujarat elections -2022?)
इन दिनों चुनावी दौर में हर किसी के मन में इस वक्त कई यक्ष प्रश्न हैं, फिर भी सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न ये है कि गुजरात विधानसभा चुनावों (Gujarat Elections -2022) में आम आदमी पार्टी (AAP) का क्या होगा? आइए इस गुजरात विधानसभा में पहले फेज की वोटिंग के बाद से जो रुझान आना शुरू हुए हैं उनपर भी थोड़ी बात कर लेते हैं। तो गुजरात के अनेकों स्थानीय पत्रकारों से बातचीत करके हमने कुछ आकलन किया है जिनको क्रमवार तरीके से आप नीचे देख देखिए फिर इन्हीं बिंदुओं पर हम विस्तार से चर्चा करेंगे।
AAP की गुजरात यात्रा के सकारात्मक पहलू :
1: आम आदमी पार्टी (AAP) का गुजरात में ग्राफ लगातार बढ़ा है, पिछले पांच छह महीनों में उसने गुजरात में अपना असर बनाए रखा है।
2: आम आदमी पार्टी (AAP) की सबसे बड़ी ताकत उसकी सोशल मीडिया पर पकड़, प्रचार के तरीके और मुद्दों की राजनीति को मुख्यधारा में लाने की सफल कवायद।
3: आम आदमी पार्टी के गैरेन्टी कार्ड्स (AAP-Guarantee Cards) भी निम्न मध्यम और गरीब वर्ग के लोगों को आकर्षित करते रहे।
4: केजरीवाल (Arvind Kejriwal) का बार बार गुजरात भ्रमण, उनके द्वारा दिल्ली और पंजाब मॉडल का जिक्र अपने कार्यकाल की उपलब्धियों का ज़िक्र किन्हीं इलाकों में शहरी मध्यम वर्ग को आकर्षित करता दिखा।
5: आम आदमी पार्टी का सांप्रदायिक राजनीति से बचना, और गणेश लक्ष्मी की तस्वीर वाली बात, हो या बिल्किस बानो मामले पर डिप्लोमेटिक चुप्पी हो, ये सब मौके थे जब AAP ने अपनी छवि सॉफ्ट हिंदुत्व वाली छवि को पेश कर के गुजरात जैसे धुर सांप्रदायिक राज्य के बहुसंख्यकों को एक ओपन स्पेस दिया।
आम आदमी पार्टी की सफलताओं और विफलताओं का विश्लेषणात्मक विवरण:
1: गुजरात जैसे राज्य में जहां भाजपा नाम की पार्टी का सिर्फ एक ही मतलब है, और वो है "नरेंद्र मोदी" और वहां लोग उम्मीदवार को वोट नहीं करते बल्कि नरेंद्र मोदी को वोट करते हैं -और चूंकि नरेंद्र मोदी अब देश के प्रधानमंत्री भी हैं, और गुजरात से निकले प्रधानमंत्री को गुजरात का वोटर नकारना नहीं चाहता, खासकर शहरी इलाकों का बड़ा वोटर वर्ग तो ऐसा नहीं करता है।
2: भारतीय जनता पार्टी ने पिछले कई सालों से लोगों के मन में परिवर्तन को लेकर एक काल्पनिक डर पैदा करके रखा है जिसके तहत ये प्रचारित किया जाता है कि अगर भाजपा सत्ता से गई तो गुजरात में लॉ एंड ऑर्डर की बड़ी समस्या उत्पन्न होगी, और इस बात को पुष्ट करने के लिए वे - कई दशकों पहले की गैर भाजपाई सरकारों का उदाहरण देते हैं। और खासकर 2002 का जिक्र करके "सबक सिखला दिया" जैसी बातें करके ध्रुवीकरण की भावना को बल देते हैं।
3: आम आदमी पार्टी के द्वारा उठाए गए मुद्दों से गुजरात के वोटर्स भले प्रभावित हुए हों, पर ये प्रभाव वोट में उसी प्रकार से परिवर्तित हो पायेगा ये कह पाना अभी भी मुश्किल है। मध्य गुजरात में काम कर रहे कई स्थानीय पत्रकार और न्यूज़ एजेंसीज ये कहती हैं कि इन इलाकों में आम आदमी पार्टी ज़मीनी तौर पर अभी भी उतनी मजबूत नहीं नजर आ रही है कि वो यहां कोई बड़ा कमाल कर पाए, खास तौर - अहमदाबाद,आणद,वडोदरा,भरूच,राजकोट आदि में तो एक भी सीट आ जाए तो बड़ी उपलब्धि होगी।
4: शहरी इलाकों में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार कोई इस प्रकार के बड़े या नामी चेहरे नहीं हैं, कि जनता जिनके रसूख पर वोट दे। चलिए नामी चेहरे ना सही पर कहीं कहीं पर तो ऐसे उम्मीदवार भी लड़ रहे हैं जिनके नाम भी जनता नहीं जानती - फिर भी इनके लिए अगर वोट पड़ते हैं तो वो वोट केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के नाम पर ही पड़ेंगे, उनकी गैरेंटीज के नाम पर पड़ेंगे, उनकी परिवर्तन की दावेदारी को पड़ेंगे और भाजपा से नाराज़ उन वोटर्स के वोट भी आम आदमी पार्टी बटोरेगी जो कांग्रेस को वोट नहीं करना चाहते। फिर भी ये वोट उतने नहीं होंगे जो उनके उम्मीदवारों को जितवा पाने में सहायक हो।
5: शायद आम आदमी पार्टी को भी जैसे इन सभी बातों का पता लग गया था, इसीलिए स्थिति को भांपते हुए उन्होंने कुछ खास सीटों पर ही प्रचार तेज़ कर दिया जहां उनके जीतने की संभावनाएं ज्यादा थी। उदाहरण के लिए आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया (Gopal Italia) की सूरत की कतरगाम (Katargam) की सीट, पाटीदार समाज के बड़े नेता अल्पेश कथरिया (Alpesh Kathiriya) की वराछा विधानसभा (सूरत) की सीट, आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री के चेहरे इसुदान गढ़वी (Isudan Gadhvi) की खंबालिया-द्वारका (Jamkhambhaliya) की सीट, और अन्य इक्का दुक्का सीटें जहां उनके पक्ष में माहौल अच्छा बनता दिखाई दिया। यानि इस लिहाज से अगर आम आदमी पार्टी दहाई का आंकड़ा भी छू ले तो यह बड़ी बात होगी। और अगर ऐसा हुआ तो भी आम आदमी पार्टी भले चुनाव ना जीते पर बाज़ीगर की भूमिका में होगी। क्योंकि इस प्रकार से गुजरात में एक तीसरा मोर्चा स्थापित हो जायेगा, और ये गुजरात के वोटर्स को इस मोर्चे पर भरोसा जताने का एक बड़ा कारण भी बनेगा और इस वक्त नहीं तो अगली बार सही पर परिवर्तन की उम्मीद पुख्ता हो जायेगी।
6: अगर आम आदमी पार्टी दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू पाई और अगले चुनावों तक अपनी उपस्थिति बरकरार नहीं रख पाई तो आम आदमी पार्टी बुरी तरह विफल साबित होगी। अगर मुट्ठी भर सीटों के बावजूद वे अपनी लगातार उपस्थिति दर्ज रख पाते हैं तो भी उनके लिए भविष्य उज्जवल ही होगा। क्योंकि जिस पार्टी का किसी राज्य में कोई आधार ना रहा हो वो 2-4 सीटें भी ले आए तो ये उसकी बड़ी उपलब्धि है। कमसे कम उसके पास पाने के लिए बहुत कुछ है।
7: चूंकि एंटी इनकंबेन्सी (Anti -Incumbency) वोटों की तादाद भी छोटी नहीं होती, और खासकर सौराष्ट्र (Saurashtra) के ग्रामीण इलाकों में ये तादाद और बढ़ जाती है और ये अब तक बड़े तौर पर कांग्रेस (Congress) को ही जाते रहे हैं पर अब इनमें विभाजन होगा, कुछ कांग्रेस को और कुछ AAP को जायेंगे। या हो सकता है ज्यादातर AAP को जाएं। पर कैंडिडेट्स के चेहरे के अनुसार भी इनका विभाजन होगा। शायद ऐसे क्षेत्र जहां कांग्रेस के पास कोई मजबूत चेहरा नहीं है तो वहां आम आदमी पार्टी को एज मिल सकती है। और अगर इन्ही इलाकों में ये वोट पूरी तरह से AAP को ट्रांसफर नहीं हुए तो इसमें भाजपा का ही फायदा होगा। इसलिए इस बात की भी पूरी पूरी संभावना है कि आम आदमी पार्टी का वोट शेयर ज़रूर अच्छा रहे पर उसकी तुलना में सीटें इतनी अच्छी हासिल ना हो पाए।
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